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________________ वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...191 कहते हुए बायीं तरफ करें। 6. कंधा- फिर क्रोध मान परिहरूं कहते हए दायें कंधे का प्रतिलेखन करें। फिर माया लोभ परिहरूं कहते हुए बायें कंधे का प्रतिलेखन करें। 7. पाँव- तत्पश्चात पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय जयणा करूं कहते हुए क्रमश: दाहिने पाँव के मध्य, दायें एवं बायें भाग की प्रतिलेखना रजोहरण या चरवला से करें। फिर वाउकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय जयणा करूं कहते हुए क्रमश: बायें पाँव के मध्य आदि भागों की प्रतिलेखना रजोहरण से करें। इस प्रकार बायें हाथ की 3, दायें हाथ की 3, मस्तक की 3, मुख की 3, हृदय की 3, दायें-बायें कंधे की 4, दायें पांव की 3, बायें पाँव की 3 ऐसे कुल शरीर के 25 स्थानों की प्रतिलेखना और प्रमार्जना होती है। __ ध्यातव्य है कि उक्त पच्चीस प्रकार की शरीर प्रतिलेखना पुरुष के होती है। स्त्रियों के गोप्य अवयव आवृत्त होने से उनके दोनों हाथ की 6, दोनों पाँव की 6, मुख की 3 ऐसे कुल 15 स्थानों की ही प्रमार्जना होती है। मुखवस्त्रिका एवं शरीर प्रतिलेखना की प्रायोगिक विधि गुरूगम पूर्वक सीखनी चाहिए। यहाँ तो उस विधि का उल्लेख मात्र किया है। संडाशक प्रमार्जन विधि सामायिक, प्रतिक्रमण, द्वादशावर्त्तवन्दन आदि करते समय संकोचविस्तार को प्राप्त होने वाले संधिस्थानीय अंग संडाशक कहलाते हैं। वन्दन करते वक्त अहिंसाव्रत के परिपालनार्थ इन अंगीय स्थानों की प्रमार्जना आवश्यक है। उसकी विधि यह है सर्वप्रथम 'इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए' इतना पाठ दोनों हाथ जोड़कर बोलें। . (1 से 3) पाँव के पीछे का भाग- पीछे के भाग में 1. सर्वप्रथम दाहिना पाँव पूरा (कटि भाग से पिंडली तक), फिर दाएं और बाएं पाँव के बीच का भाग, फिर बायां पाँव पूरा (कटि भाग से लेकर पिंडली तक) ऐसे तीन स्थानों की प्रमार्जना करें। (4 से 6) पाँव के आगे का भाग- फिर पूर्ववत विधि से, पाँव के अग्र भाग में – दायाँ पाँव पूरा, फिर दायें एवं बायें पावँ के बीच का भाग, फिर बायाँ पाँव पूरा- इन तीन स्थानों की चरवला या रजोहरण से प्रमार्जना करें।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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