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________________ वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण ...189 बार खंखेरते हैं। 4. पुरिम करने के पश्चात मुखवस्त्रिका को बायें हाथ पर डालकर दायें हाथ से इस प्रकार खींचे कि मुखवस्त्रिका के दो पट हो जाये। 5. वधूटक39- उसके बाद दाहिने हाथ की चार अंगुलियों के बीच दो या तीन वधूटक करें। ___ 6. फिर दाहिने हाथ की चार अंगुलियों के तीन आंतरों के बीच में मुखवस्त्रिका को भरकर (वधूटक करके) नौ बार हल्के से खंखेरने की और नौ बार ग्रहण करने की क्रिया करें। जैन शब्दावली में ग्रहण करने की क्रिया को अक्खोडा और खंखेरने की क्रिया को पक्खोडा कहते हैं। इस तरह नौ अक्खोडा और नौ पक्खोडा होते हैं। ___7. अक्खोडा0- दायें हाथ की अंगुलियों से मुखवस्त्रिका का वधूटक कर, दोनों जंघाओं के बीच स्थित बायें हाथ पर मुखवस्त्रिका को स्पर्श न करवाते हुए जैसे किसी को अन्दर ले जा रहे हों- इस तरह हथेली से कोहनी तक तीन बार प्रमार्जन करें। उस समय (8 से 10) सुदेव, सुगुरु, सुधर्म आदरूं- ये तीन बोल बोलें। 8. पक्खोडा1- फिर पूर्ववत दायें हाथ में ग्रहण की हुई मुखवस्त्रिका का बायें हाथ पर स्पर्श करवाते हुए जैसे-किसी वस्तु को झाड़ रहे हों- इस तरह कोहनी से हथेली तक तीन बार प्रमार्जन करें। उस समय (11 से 13) कुदेव, कुगुरु, कुधर्म परिहरूं- ये तीन बोल मन में कहें। 9. अक्खोडा- पुनः वधूटक पूर्वक दायें हाथ में ग्रहण की हुई मुखवस्त्रिका का बायें हाथ पर स्पर्श न करवाते हुए हथेली से कोहनी तक तीन बार प्रमार्जना करें। उस समय (14-16) ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदरूं- इन तीन बोलों का चिन्तन करें। ___10. पक्खोडा- पुन: वधूटक पूर्वक दायें हाथ में गृहीत मुखवस्त्रिका का बायें हाथ पर स्पर्श करवाते हुए कोहनी से हथेली तक तीन बार प्रमार्जना करें। उस समय (17 से 19) ज्ञान विराधना, दर्शन विराधना, चारित्र विराधना परिहरूं- ये बोल कहें। 11. अक्खोडा- पुनः पूर्ववत मुखवस्त्रिका का बायें हाथ पर स्पर्श न करवाते हुए हथेली से कोहनी तक तीन बार प्रमार्जना करें। उस समय (20 से
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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