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188...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में करते समय 'सगुरुवंदन सूत्र' बोला जाता है और इसके 25 आवश्यक कर्म होते हैं, जबकि दिगम्बर मतानुसार सामायिकदण्डक, थोस्सामिस्तव आदि पढ़े जाते हैं और इसके क्रियाकर्म 22 होते हैं। श्वेताम्बर मतानुसार कृतिकर्म के दरम्यान कायोत्सर्ग विधि नहीं होती है, किन्तु दिगम्बर आम्नाय में छह आवर्त के पश्चात नौ नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग (स्मरण) किया जाता है। मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन-विधि
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में सामायिक, प्रतिक्रमण, आचार्य आदि पदस्थ मुनियों को द्वादशावर्त वन्दन, प्रत्याख्यान ग्रहण आदि क्रियाओं में 25 बोल पूर्वक मुखवस्त्रिका एवं 25 बोलपूर्वक शरीर की प्रतिलेखना की जाती है। उसकी विधि यह है
1. सूत्र, अर्थ, सांचो सहहं37 __'सूत्र'-शब्द बोलते समय मुखवस्त्रिका के एक तरफ का सम्यक निरीक्षण करें।
'अर्थ, सांचो सद्दहुँ'-यह शब्द बोलते समय मुखवस्त्रिका को बायें हाथ के ऊपर रखें, फिर बायें हाथ से पकड़ें हुए छोर (किनारे) को दाहिने हाथ में पकड़ें तथा दाहिने हाथ से पकड़े हुए छोर को बायें हाथ में पकड़ें। इस तरह मुखवस्त्रिका के दूसरे भाग को सामने लाकर उस भाग की प्रतिलेखना करें।
यह क्रिया करते हुए सूत्र एवं अर्थ रूप तत्त्व को सत्य समझें और उसकी प्रतीति कर उस पर श्रद्धा रखें।
2. पुरिम38–फिर मुखवस्त्रिका के बायें हाथ की तरफ का भाग तीन बार झाड़े-खंखेरे। इस समय (2 से 4) सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय परिहरूं- ये तीन बोल मन में बोलें।
दर्शन मोहनीय कर्म की उक्त तीनों प्रकृतियाँ दूर करने जैसी है अत: इन प्रकृतियों का चिन्तन करते हुए मुखवस्त्रिका को तीन बार खंखेरते हैं। ___ 3. फिर मुखवस्त्रिका को बायें हाथ पर रखते हुए, उसके पार्श्व को मोड़कर दाहिने हाथ की तरफ के भाग को तीन बार खंखेरें। उस समय (5-6) कामराग, स्नेहराग, दृष्टिराग परिहरूँ- ये तीन बोल मन में बोलें।
काम आदि तीन प्रकार के राग छोड़ने जैसे हैं अत: मुखवस्त्रिका को तीन