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वन्दन आवश्यक का रहस्यात्मक अन्वेषण...173
आचार्य अमितगति के अनुसार दर्शन, ज्ञान और चारित्रनिष्ठ विशुद्ध आत्मा को किया गया वन्दन उत्तम वन्दन है।10
आदरणीय डॉ. सागरमलजी जैन के अनुसार मन, वचन और काया का वह प्रशस्त व्यापार, जिससे पथ प्रदर्शक गुरु एवं विशिष्ट साधनारत साधकों के प्रति श्रद्धा और आदर प्रकट किया जाता है उसे वन्दन कहते हैं। इस कर्म के द्वारा उन व्यक्तियों को प्रणाम किया जाता है, जो साधना पथ पर अपेक्षाकृत आगे बढ़ चुके हैं।11
आशय है कि विनय गुण प्रकट करते हुए सद्गुरुओं का सर्व प्रकार से बहुमान करना, आदर करना, स्तुति करना वन्दन है। वन्दन के पर्यायवाची एवं उनके दृष्टान्त ___ आवश्यकनियुक्ति, गुरुवन्दनभाष्य, मूलाचार आदि ग्रन्थों में वन्दना के पाँच नामान्तर बतलाये गये हैं। प्रवचनसारोद्धार में इन पर्याय नामों को 'अभिधान'- यह संज्ञा प्रदान करते हुए इसका विस्तृत निरूपण किया गया है। वन्दना के समानार्थी शब्द ये हैं- 1. वन्दनकर्म 2. चितिकर्म 3. कृतिकर्म 4. पूजाकर्म और 5. विनयकर्म।12
1. वन्दनकर्म- मन, वचन, काया के प्रशस्त व्यापार द्वारा गुरु को वन्दन करना, वन्दन कर्म है। इसके दो प्रकार हैं- (i) द्रव्य वन्दन-उपयोग शून्य सम्यक्त्वी का वन्दन (ii) भाव वन्दन-उपयोग युक्त सम्यक्त्वी का वन्दन।13
इस विषय में शीतलाचार्य का दृष्टान्त प्रसिद्ध है- श्रीपुर नगर में शीतल नाम का राजा था। उसके श्रृंगार मंजरी नाम की बहिन थी। उसके शुभ लक्षणों से युक्त चार पुत्र थे। राजा शीतल एकदा धर्मघोषसूरि के उपदेश से विरक्त होकर प्रव्रजित हो गए। उन्होंने आगमों का गहन अध्ययन किया। गुरु ने सुयोग्य जानकर उसे आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया।
इधर माता की प्रेरणा एवं मामा के त्याग-वैराग्य की प्रशंसा सुनकर श्रृंगार मञ्जरी के चारों पुत्रों ने स्थविर मुनि के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। एक बार वे चारों ही विचरण करते हुए मातुल (मामा) आचार्य को वन्दन करने हेतु अवंति गये। संध्या हो जाने से वे नगरी के बाहर ही ठहर गये। किसी श्रावक ने शीतलाचार्य को मुनियों (भानजे) के आगमन की बात कही। वे अत्यन्त प्रसन्न हुए। रात्रिकाल में चारों मुनि कायोत्सर्ग ध्यान में स्थित हो गए, परिणामों की