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________________ चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक का तात्त्विक विवेचन ...155 चतुर्थ गाथा का दूसरा खंड गाथाछंद में है। इसमें चतुर्विंशति तीर्थंकरों का नाम स्मरण एवं उन्हें वंदन किया गया है। पंचम-षष्ठम और सप्तम गाथा का तीसरा खंड गाथा छंद में ही है। सुबोधा सामाचारी में इन अन्तिम गाथाओं को 'प्रणिधान गाथा-त्रिक' कहा गया है।44 इस सूत्र में प्रत्येक गाथा के चार चरण हैं तथा सम्पूर्ण गाथाओं के कुल पद 28, संपदा 28 और अक्षर 256 हैं। प्रथम खंड- इस खंड की प्रथम गाथा में तीर्थंकरों के चार विशेषण बतलाते हुए उनकी स्तुति करने की प्रतिज्ञा की गई है। लोगस्स उज्जोअगरे- लोक में उद्योत करने वाले। यहाँ लोक शब्द से पंचास्तिकायात्मक लोक समझना चाहिए। पंचास्तिकाय अर्थात 1. धर्मास्तिकाय 2. अधर्मास्तिकाय 3. आकाशास्तिकाय 4. पुद्गलास्तिकाय और 5. जीवास्तिकाय। आवश्यक टीका, चैत्यवंदन महाभाष्य, योगशास्त्र स्वोपज्ञ विवरण, देववंदन भाष्य, ललित विस्तरा आदि ग्रन्थों में लोक का उपर्युक्त अर्थ ही किया गया है, किन्तु आचारदिनकर में लोक शब्द से चौदह राजलोक अर्थ को स्वीकार किया है।45 दिगम्बर के मूलाचार में लोक शब्द के चार निरूक्त बतलाये गये हैं- लोकित, आलोकित, प्रलोकित और संलोकित। ये चारों पर्यायवाची एक ही अर्थ के द्योतक हैं। जिनेश्वर परमात्मा के द्वारा यह सर्वजगत लोकित-अवलोकित कर लिया जाता है इसीलिए इसकी 'लोक' यह संज्ञा सार्थक है। टीकाकार ने इन चारों क्रियाओं का पृथक्करण करते हुए इसका स्पष्टीकरण किया है। छद्मस्थ अवस्था में मति और श्रुत इन दो ज्ञानों के द्वारा यह सर्व 'लोक्यते' अर्थात देखा जाता है इसीलिए इसे लोक कहते हैं। अवधिज्ञान द्वारा मर्यादा रूप से यह 'आलोक्यते' आलोकित किया जाता है इसलिए यह लोक कहलाता है। मन:पर्यवज्ञान के द्वारा 'प्रलोक्यते' विशेष रूप से यह देखा जाता है अत: लोक कहलाता है। केवलज्ञान के द्वारा तीर्थंकर भगवान इस सम्पूर्ण जगत को जैसा है वैसा ही 'संलोक्यते' संलोकन करते हैं- जान लेते हैं अत: यह लोक कहलाता है।46 आवश्यकनियुक्ति में लोक के आठ प्रकार बतलाये हैं- 1. नामलोक 2. स्थापनालोक 3. द्रव्यलोक 4. क्षेत्रलोक 5. काललोक 6. भवलोक 7. भावलोक और 8. पर्यायलोक।47 दिगम्बर के मूलाचार में लोक नौ प्रकार का
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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