SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 146... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में में प्रयुक्त है अतः ज्ञानबोधि, दर्शनबोधि और चारित्रबोधि का अर्थ सम्यक्ज्ञान, सम्यक्दर्शन और सम्यक्चारित्र समझना चाहिए। ये तीनों मोक्षमार्ग के अनिवार्य सोपान हैं। इस कथन का तात्पर्य यह है कि तीर्थंकर देवों का स्तवन और स्तुति रूप भाव मंगल से दर्शनशुद्धि होने के अनन्तर ज्ञान और क्रिया द्वारा मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है। पंडित आशाधरजी के अनुसार नामस्तव आदि रूप व्यवहार स्तवन से पुण्य की परम्परा प्राप्त होती है जिसके फलस्वरूप अलौकिक सांसारिक अभ्युदय का सुख उपलब्ध होता है तथा भावस्तव के द्वारा शुद्ध चित्स्वरूप की प्राप्ति होती है | 28 सामान्यतया तीर्थंकर त्याग, वैराग्य और संयम साधना की दृष्टि से महान है। उनके गुणों का उत्कीर्तन करने से साधक के अन्तर्हृदय में आध्यात्मिक बल का संचार होता है। कदाच् किसी कारणवश आत्मश्रद्धा शिथिल हो जाये तो उसमें अभिनव प्रेरणा का उदय होता है। इसी के साथ चित्तदशा निर्मल बनती है, वासनाएँ उपशान्त होती हैं। जैसे तीव्र ज्वर के समय बर्फ की ठंडी पट्टी लगाने से ज्वर शान्त हो जाता है, उसी प्रकार जब जीवन में विषय-वासना का ज्वर विविध तरह की हलचल पैदा कर रहा हो, उस समय तीर्थंकर पुरुषों का स्मरण बर्फ की पट्टी की तरह शान्ति प्रदान करता है । आचार्य देवेन्द्रमुनि लिखते हैं कि जब हम तीर्थंकरों की स्तुति करते हैं तब प्रत्येक तीर्थंकर का उज्ज्वल आदर्श हमारे समक्ष चलचित्र की भाँति उपस्थित रहता है। भगवान ऋषभदेव का स्मरण करते ही आदिम युग का सब कुछ मानस पटल पर उभरने लगता है। फलत: साधक सोचने लगता है कि प्रथम तीर्थंकर ने मानव-संस्कृति का निर्माण किया। राज्य व्यवस्था का नैतिकता पूर्वक संचालन किया। मानव जाति को कला, विज्ञान, सभ्यता आदि का प्रशिक्षण दिया। अहिंसा धर्म का पाठ पढ़ाया। अतुल वैभव का परित्याग कर श्रमण जीवन को अंगीकार किया। दीक्षित होने के पश्चात एक वर्ष तक भिक्षा न मिलने पर भी यत्किंचिद् विचलित नहीं हुए । इसी तरह सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ भगवान का सुमिरण करने से अपूर्व शान्ति का अनुभव होने लगता है । उन्नीसवें तीर्थंकर मल्लिनाथ भगवान की स्तुति करते समय मोहनगृह स्थित पुत्तलिका का स्मरण हो जाने से दैहिक आसक्ति न्यून होती है तथा नारी जीवन का ज्वलन्त आदर्श उपस्थित हो उठता है । बाईसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि भगवान का स्तवन
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy