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________________ चतुर्विंशतिस्तव आवश्यक का तात्त्विक विवेचन ... 137 प्रशमरस निमग्नादि अथवा समवसरण स्थित आकृति आदि का चिंतन किए बिना नहीं रह सकता है अतः उपयोगवान होकर तीर्थंकर भगवान का नाम स्मरण करना पूर्णतः सार्थक है। 2. स्थापना निक्षेप - नाम शब्द है और आकृति अर्थ है। अर्थज्ञान के बिना सीखा गया सूत्र सुप्त माना गया है। सूत्र का अध्ययन अर्थज्ञानपूर्वक होना चाहिए तभी वह मंत्राक्षरों की भाँति फलदायी होता है और जैसे-जैसे आत्मा के अध्यवसाय शुभ होते हैं वैसे-वैसे अधिक निर्जरा होती है। शुभ अध्यवसाय शुभ विचार के अधीन है। शुभ विचारों की उत्पत्ति मात्र सूत्राध्ययन की अपेक्षा अर्थयुक्त सूत्राध्ययन से अधिक होती हैं अत: सूत्रोच्चारण के साथ उसके अर्थ और उपयोग का होना अति आवश्यक है। 3. द्रव्य निक्षेप - द्रव्य अरिहंत का स्वरूप केवल अतीत और अनागत कालीन अवस्था की अपेक्षा माना जाता है। 'दव्वजिणा जिणजीवा' यह वचन भाव तीर्थंकर रूप अवस्था को प्राप्त अथवा अनागत काल में इस अवस्था को प्राप्त होने वाले जीवों की अपेक्षा कहा जाता है। नाम और स्थापना निक्षेप की तरह द्रव्य निक्षेप भी आराध्य है जैसे प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान की विद्यमान अवस्था में जब साधुजन आवश्यक क्रिया-प्रतिक्रमण करते हैं तब दूसरे आवश्यक चतुर्विंशतिस्तव की आराधना करते समय तेईस तीर्थंकर तो उस समय तक उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु भविष्य में उस पद को प्राप्त करने वाले होने से वे तेईस तीर्थंकर द्रव्य जिन रूप में माने जाते हैं। इस प्रकार उस काल में अनुत्पन्न तेईस तीर्थंकरों की आराधना की जाती थी । यदि द्रव्य निक्षेप न माने तो द्वितीय आवश्यक रूप आराधना घटित नहीं हो सकती है। यदि यह कहा जाए कि आदिनाथ भगवान के समय चतुर्विंशतिजिनस्तवन के स्थान पर एक जिनस्तव होना चाहिए । अजितनाथ भगवान के समय में द्विजिनस्तव होना चाहिए तो इस प्रमाणानुसार युक्ति घटित नहीं होती, क्योंकि शाश्वत अध्ययन के पाठों में लेश मात्र परिवर्तन भी जैन दर्शन स्वीकार नहीं करता है अतः द्रव्यनिक्षेप को आराध्य मानना चाहिए। 14 4. भाव निक्षेप - समवसरण में विराजमान होकर अतिशय वाणी से युक्त देशना प्रदान करने वाले तीर्थंकर देव भावजिन कहलाते हैं। भावजिन का सालंबन ध्यान इस प्रकार करना चाहिए- तीर्थंकर भगवान स्वयं नाम, स्थापना,
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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