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________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण... 119 8. सम्मत्त-नाण-संजम - तवेहिं, जं तं पसत्थ समागमणं । तु तं तु भणिदं, तमेव सामाइयं णाम ॥ समयं 9. जो जाणइ समवायं, दव्वाण गुणाण पज्जयाणं च । सब्भावं ते सिद्धं, सामाइयं उत्तमं जाणे ॥ मूलाचार, गा. 519 10. जो समो सव्व भूदेसु, तसेसु थावरेसु य । जस्स रागो य दोसो य, वियडिं ण जाणंति दु ॥ 11. जीविद-मरणे लाभालाभे, संजोय-विप्पओगे य। बंधुरि - सुह- दुक्खादिसु, समदा सामाइयं णाम ।। 15. (क) नियमसार, 147, 125 (ख) राजवार्तिक, 6/24, पृ. 530 16. अनगार धर्मामृत, 8 /20 वही, गा. 522 12. (क) धवला टीका, 8/3, 41/84/1 (ख) अमितगति श्रावकाचार, 8/31 13. सामायिकं सर्वजीवेषु समत्त्वम् - भावपाहुड टीका, 77/221/13 14. यत्सर्वद्रव्यसंदर्भे, रागद्वेषव्यपोहनम् । आत्मतत्त्व निविष्टस्य, तत्सामायिकमुच्यते ॥ 19. समत्वं योग उच्यते। वही, गा. 526 वही, गा. 23 योगसार प्राभृत, 5/47 17. कषाय पाहुड, 1/1, 1-81/98/5 18. नित्यनैमित्तिकानुष्ठानं तत्प्रतिपादकं शास्त्रं वा सामायिकमित्यर्थः। 20. भगवतीसूत्र, 1/9 21. जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे नियमे तवे । तस्स सामाइयं होइ, इ इ केवलि भासियं ॥ गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीव तत्त्वप्रदीपिका टीका, 367/789/12 गीता, 2/48 (क) आवश्यकनियुक्ति, 797 (ख) अनुयोगद्वार, सू. 599 (ग) नियमसार, 127
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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