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120...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में 22. सावज्जजोगविरओ, तिगुत्तो सु संजओ। उवउत्तो जयमाणो, आया समाइयं होइ ।
आवश्यकभाष्य, 149 23. सम्मदिट्ठि अमोहो, सोही सब्भाव दंसणं बोही। अविवज्जओ सुदिट्ठि त्ति, एवमाई निरूत्ताई ॥
आवश्यनियुक्ति, 861 24. अक्खर सण्णी सम्मं, सादीयं खलु सपज्जवसितं च । गमियं अंगपविटुं, सत्त वि एते सपडिवक्खा ।।
वही, 862 25. विरयाविरइ संवुडमसंवुडे बालपंडिए चेव। देसेक्कदेस विरती, अणुधम्मोऽगारधम्मो य॥
वही, 863 26. सामाइयं समइयं, सम्मावाओ समास संखेवो । अणवज्जं च परिण्णा, पच्चक्खाणे य ते अट्ठ ।
दमदंते मेयज्जे, कालयपच्छा चिलाय अत्तेय । धम्मरूइ इला तेयलि, सामाइए अट्ठदाहरणा ।।
वही, 864-865 27. आवश्यकनियुक्ति, 796 28. तत्र सामायिकं नाम चतुर्विधं नामस्थापनाद्रव्य भाव भेदेन।
भगवती आराधना, गा. 118 की विजयोदयाटीका, पृ. 153 29. सामाइयं चउव्विहं, दव्व सामाइयं खेत्तसामाइयं कालसामाइयं, भावसामाइयं चेदि.... भावसामाइयं णाम।
कषायपाहुड, 1/1-1/81/97/4 30. (क) अनगार धर्मामृत, 8/19
(ख) गोम्मटसार जीवकाण्ड, 367/789/13 31. अनगार धर्मामृत, 8/21 32. वही, 8/19 की टीका 33. वही, 8/22 34. गोम्मटसार-जीवकाण्ड, 367, पृ. 613 35. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भा.4, पृ. 416 36. अनगार धर्मामृत, 8/23