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________________ 104... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में यहाँ प्रात:कालीन एवं सायंकालीन सामायिक की अपेक्षा 'सज्झाय' और 'कटासन' इन दो आदेशों में क्रम परिवर्तन का जो निर्देश किया गया है उसका मुख्य कारण क्या हो सकता है? यह विद्वद्जनों के लिए अन्वेषणीय है। विधिमार्गप्रपा में यह भी सूचित किया गया है कि यदि कोई गृहस्थ सामायिक या पौषधव्रत ग्रहण करके बैठा हुआ हो, उसे सामायिक या पौषधग्रहण किया हुआ अन्य व्यक्ति हाथ जोड़ें, तो उन्हें 'वंदामो' शब्द बोलना चाहिए। जो सामायिक या पौषध व्रत में नहीं है उनके द्वारा हाथ जोड़कर वंदन किया जाए तो उन्हें व्रती के द्वारा 'सज्झायं करेह' - ऐसा कहना चाहिए। वर्तमान में पौषधव्रती को सुखपृच्छा तो की जाती है किन्तु प्रत्युत्तर में 'सज्झायं करेह' यह बोलने की प्रणाली नहींवत है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि खरतरगच्छ की वर्तमान परम्परा में प्रतिक्रमण करने से पूर्व जब सामायिक ग्रहण करते हैं, उस समय 'कटासन' और 'सज्झाय' का आदेश लेने से पूर्व एक खमासमणसूत्र पूर्वक - 'मुँहपत्ति पडिलेहूँ?” बोलकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करते हैं। इसमें भी यह नियम है कि जिसने चौविहार उपवास किया हो, वह मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन न करें, जिसने तिविहार उपवास किया हो अर्थात पानी पीया हो, वह मुखवस्त्रिका का पडिलेहण कर गुरु को द्वादशावर्त्तवन्दन करे। उसके बाद गुरुमुख से दिवसचरिम या पाणहार आदि के प्रत्याख्यान ग्रहण करे। फिर शेष विधि सम्पन्न करते हैं। यह विधि सायंकालीन प्रत्याख्यान ग्रहण करने से ही सम्बन्धित है। इस विधि में चौविहार-उपवासी, तिविहार- उपवासी एवं भोजनग्राही की अपेक्षा से जो विधि भेद बतलाया गया है, वह गीतार्थों के लिए अन्वेषणीय है। यह विधि अर्वाचीन ग्रन्थों के आधार से कही गई है। सामायिक पारने की विधि - • सामायिक की अवधि पूर्ण होने पर यदि बिजली आदि का प्रकाश शरीर पर पड़ा हो या गमनागमन सम्बन्धी किसी प्रकार का दोष लगा हो, तो सर्वप्रथम 'ईर्यापथिक प्रतिक्रमण' करें। • फिर एक खमासमणपूर्वक वन्दन कर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। • फिर एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि भगवन्! सामाइयं पारावेह’– हे भगवन्! आपकी आज्ञापूर्वक सामायिक पूर्ण करूँ ? ऐसा कहें। यदि गुरु महाराज हों, तो 'पुणोवि कायव्वो' - सामायिक की साधना पुनः करनी
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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