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सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण... 105 चाहिए - ऐसा बोलें। तब शिष्य 'यथाशक्ति' कहें। यह परम्परा वर्तमान में है, विधि ग्रन्थों में इसका उल्लेख नहीं है ।
• तदनन्तर पुनः एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! सामाइयं पारेमि' - हे भगवन्! आपकी आज्ञापूर्वक सामायिक पूर्ण करता हूँ- ऐसा बोलें। तब गुरु उपस्थित हों, तो 'आयारो न मोतव्वो' - तुम्हें समतामय आचार का त्याग नहीं करना चाहिए - ऐसा कहें। इसके प्रत्युत्तर में सामायिक पारने वाला श्रावक 'तहत्ति' शब्द कहे। यह परम्परा भी वर्तमान में है ।
• उसके बाद दोनों हाथ जोड़कर तीन बार नमस्कारमन्त्र बोलें। फिर दाएं हाथ को नीचे और बाएं हाथ को मुख के आगे रखकर तथा मस्तक को भूमितल पर स्पर्शित करके ‘भयवंदसण्णभद्दोसूत्र' बोलें। 163
तदनन्तर यदि पुस्तक आदि की स्थापना की हो, तो दाएं हाथ की उत्थापन मुद्रा बनाकर तीन नमस्कारमन्त्र बोलें और पंच परमेष्ठी के स्मरण पूर्वक पुस्तक आदि को उत्थापित करें।
तपागच्छ परम्परा में सामायिकग्रहण एवं सामायिकपारण - विधि लगभग पूर्ववत जाननी चाहिए। विशेष अन्तर यह है कि • इनमें पुस्तक आदि की स्थापना करते समय एक नमस्कारमन्त्र और 'पंचिंदियसंवरणोसूत्र' बोलते हैं। • खरतरगच्छ में पहले सामायिक दंडक का उच्चारण करते हैं, फिर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करते हैं जबकि तपागच्छ में पहले ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करते हैं, फिर सामायिक दंडक उच्चरते हैं। • खरतर परम्परा में सामायिकदंडक का उच्चारण करने से पूर्व नमस्कार मन्त्र एवं सामायिकदंडक तीन-तीन बार बोलते हैं, जबकि तपागच्छ परम्परा में मन्त्र एवं दंडक एक बार बोलते हैं। • खरतर सामाचारी के अनुसार सामायिक पूर्ण करते समय 'भयवंदसण्णभद्दोसूत्र' बोला जाता है164 किन्तु तपागच्छ परम्परा में 'सामाइयवयजुत्तो' का पाठ बोलते हैं और सामायिक लेने की विधि अन्त में 'सज्झाय' का आदेश लेकर तीन नमस्कारमन्त्र बोलते हैं। शेष विधि-नियम लगभग समान ही हैं।
सायंकाल में प्रतिक्रमण की सामायिक पूर्ण करते समय ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करने के बाद 'चउक्कसाय' का चैत्यवंदन कर सामायिक पूरी करते हैं। अचलगच्छ परम्परा में सामायिक ग्रहण एवं सामायिक पारण-विधि का स्वरूप निम्न प्रकार है165 • सर्वप्रथम नमस्कारमन्त्र एवं 'पंचिंदियसूत्र' पूर्वक