SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 161
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण... 103 करें। फिर खड़े होकर दोनों हाथों में चरवला एवं मुखवस्त्रिका ग्रहण कर किंचिद् मस्तक झुकाते हुए तीन नमस्कारमन्त्र बोलें और तीन बार उच्चारणपूर्वक सामायिकदंडक बोलें। यदि गुरु हो, तो उनके मुख से सामायिकदंडक उच्चरें सामायिक पाठ निम्नोक्त है करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि, जाव नियमं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि, कारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि । भावार्थ- हे भगवन्! मैं दो करण तीन योगपूर्वक सावद्य-योग (हिंसामय व्यापार प्रवृत्ति) का यथानियम त्याग करता हूँ और आत्मभावरूप सामायिक साधना में स्थिर होता हूँ। हे भगवन्! सामायिक साधना में स्थिर होने के साथ ही अतीतकृत सावद्य कार्यों का प्रतिक्रमण करता हूँ, निन्दा करता हूँ, गर्हा करता हूँ, अपनी आत्मा को उस पाप - व्यापार से निवृत्त करता हूँ । ईर्यापथिक प्रतिक्रमण विधि - • तदनन्तर एक खमासमणसूत्र पूर्वक इरियावहि; तस्स; अन्नत्थसूत्र बोलकर चार नमस्कारमन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। • उसके बाद वर्षावास का समय हो, तो एक खमासमणपूर्वक 'बइसणं संदिसावेमि' पुनः एक खमासमण देकर 'बइसणं ठामि' बोलकर आसन पर बैठने का आदेश ग्रहण करें। यदि चातुर्मास के अतिरिक्त आठ मास का समय हो, तो पूर्ववत दो खमासमणपूर्वक 'पाउंछणं संदिसावेमि' 'पाउंछणं ठामि' कहकर पादप्रोंछन का आदेश लें। वर्तमान में 'पाउंछणं' का आदेश लेने की परम्परा नहींवत है। • उसके पश्चात पूर्ववत दो खमासमण पूर्वक क्रमशः 'सज्झायं संदिसावेमि’ ‘सज्झायं करेमि' कहकर स्वाध्याय करने की अनुज्ञा ग्रहण करें और स्वाध्याय रूप में आठ नमस्कारमन्त्र का स्मरण करें। यहाँ तक सामायिकग्रहण की विधि पूर्ण हो जाती है। विधिमार्गप्रपा में सामायिकव्रत को लेकर कुछ विशेष निर्देश भी हैं। जैसे कि यदि शीतकाल हो, तो पंगुरणं (ऊनी शाल ओढ़ने) का आदेश लेना चाहिए। वर्तमान में यह परम्परा समाप्त प्राय: है । पौषधव्रत में यह आदेश आज भी लिया जाता है। यदि सायंकाल में सामायिक ग्रहण करनी हो, तो प्रथम स्वाध्याय का आदेश लें, फिर कटासन का आदेश लेना चाहिए ।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy