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102...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में जैन धर्म की विभिन्न परम्पराओं में सामायिक ग्रहण एवं पारण विधि
खरतरगच्छ की वर्तमान परम्परा में सामायिक ग्रहण की विधि यह है-162
सामायिक ग्रहण से पूर्व की विधि-. सर्वप्रथम सामायिक ग्रहण करने का इच्छुक श्रावक या श्राविका शुद्ध वस्त्र पहनें।
. फिर पौषधशाला (उपाश्रय) में, साधु के समीप में अथवा घर के एकान्तस्थान में चौकी आदि ऊँचे आसन पर पुस्तक की स्थापना करें। यदि गुरु के सान्निध्य में सामायिक ले रहे हों तो अलग से स्थापना करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वहाँ गुरु के स्थापनाचार्य होते ही हैं।
• फिर बैठने की जगह का चरवले द्वारा प्रमार्जन करें।
स्थापनाचार्य की स्थापना विधि- . फिर कटासन (ऊनी वस्त्र खण्ड) को अपने समीप रखकर एवं घुटने के बल बैठकर, बाएं हाथ में मुखवस्त्रिका ग्रहण करें और दाहिने हाथ को पूर्वस्थापित पुस्तक आदि के सम्मुख करके तीन बार नमस्कारमन्त्र बोलें। फिर 'शुद्धस्वरूप' का पाठ बोलकर पुस्तक आदि में आचार्य की स्थापना करें। यदि गुरु के स्थापनाचार्य हों, तो पूर्वोक्त विधि नहीं करनी चाहिए।
गुरुवन्दन विधि- • उसके बाद स्थापनाचार्य के सम्मुख दो खमासमणपूर्वक अर्द्धावनत मुद्रा में 'सुहराईसूत्र' बोलें। फिर दाएं हाथ को नीचे स्थापित करते हुए एवं बाएं हाथ को मुखवस्त्रिकासहित मुख के आगे रखते हुए मस्तक झुकाकर 'अब्भुट्ठिओमिसूत्र' बोलें।
सामायिक ग्रहण विधि- • तदनन्तर एक खमासमण पूर्वक वंदन करके 'इच्छा. सदि. भगवन्! सामाइय मुँहपति पडिलेहूं?' 'इच्छं' कहकर सामायिक ग्रहण करने हेतु नीचे बैठकर पच्चीस बोलपूर्वक मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें और पच्चीस बोलपूर्वक शरीर की प्रतिलेखना करें • तदनन्तर पुनः एक खमासमण पूर्वक वन्दन करके 'इच्छा. संदि. भगवन्! सामाइयं संदिसावेमि'- हे भगवन्! आपकी आज्ञा पूर्वक सामायिक ग्रहण करता हूँ। पुनः दूसरा खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! सामाइयं ठामि'- हे भगवन्! आपकी अनुमतिपूर्वक सामायिकव्रत में स्थिर होता हूँ, इस प्रकार सामायिक करने की अनुमति ग्रहण करें। • उसके बाद पुन: एक खमासमण पूर्वक वन्दन