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________________ 100...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में उसे कहा- "हम सामायिक को जानते हैं, सामायिक का अर्थ जानते हैं।" कालास अणगार द्वारा पुनः प्रश्न करने पर प्रभु महावीर ने कहा- “आत्मा हमारा सामायिक है और आत्मा हमारे सामायिक का अर्थ है।''151 ज्ञाताधर्मकथासूत्र152 में उल्लेख है कि अणगार मेघ ने श्रमण भगवान महावीर के तथारूप153 स्थविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, इसके सिवाय कोई चर्चा नहीं है।154 उपासकदशासूत्र में यह वर्णन है कि आनन्द श्रावक ने श्रमण भगवान महावीर के समीप पाँच अणुव्रत एवं सात शिक्षाव्रत ऐसे बारहव्रत रूप श्रावक धर्म को स्वीकार किया।155 इस कथन से सामायिकव्रत स्वीकार करने का उल्लेख तो मिल जाता है, किन्तु किस विधिपूर्वक स्वीकार किया, इसकी चर्चा उपलब्ध नहीं होती है। अन्तकृद्दशासूत्र में सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढ़ने का उल्लेख है।156 अनुत्तरोपपातिकदशासूत्र भी सामायिक आदि ग्यारह अंगों के अध्ययन का ही विवेचन करता है। विपाकसूत्र में वर्णित है कि सुबाहुकुमार ने पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत सम्बन्धी बारह प्रकार के गृहस्थ धर्म को स्वीकार किया।157 इन आगमगत उद्धरणों का अध्ययन करने से यह सिद्ध होता है कि उनमें मात्र सामायिक अंगीकार करने की चर्चा है, किन्तु सामायिक व्रत किस प्रकार अंगीकृत किया जाये या करना चाहिए, तत्सम्बन्धी कोई सूचन नहीं है। दूसरे, जिन आगमों में 'सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया' ऐसा निर्देश है, वहाँ सामायिक शब्द दो अर्थों का सूचक है प्रथम तो आचारांगसूत्र का और द्वितीय समत्व धर्म का। इस सूत्र में मुख्यरूप से आत्म धर्म (समता) की चर्चा की गई है इसीलिए आचारांगसूत्र को सामायिक शब्द से भी सम्बोधित किया है। वस्तुत: यह भाव सामायिक का प्रतिपादक सूत्र है। जहाँ तक आगमेतरकालीन नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीका ग्रन्थों का प्रश्न है, उनमें आवश्यकनियुक्ति, भाष्य एवं चूर्णि परक साहित्य में सामायिक की विस्तृत चर्चा पढ़ने को मिलती है। मूलत: आवश्यकनियुक्ति सामायिक अध्ययन पर ही लिखी गई है। इसमें सामायिक का स्वरूप, सामायिक के भेद, सामायिक अधिकारी की योग्यता, सामायिक कहाँ, सामायिक स्थिति, सामायिक की उपलब्धि, सामायिक कब कितनी बार? इत्यादि विषयों को लेकर 26 द्वारों का विवेचन किया गया है।158 विशेषावश्यक भाष्य यह भी सामायिक आवश्यक
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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