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________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...99 महत्त्व दिया गया है। यही कारण है कि माता मरुदेवी को हाथी पर बैठे हुए ही समभाव द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हो गई। इलायची बांस पर चढ़ा हुआ नाच रहा था। सहसा उसके अन्तर्जीवन में समत्व की नन्ही-सी लहर पैदा हुई, वह इतनी फैली कि उसे अन्तर्मुहूर्त में बांस पर खड़े-खड़े ही केवलज्ञान हो गया। यह सामायिक का चमत्कार है। इसलिए यह मानना होगा कि सामायिक किसी अमुक वेशविशेष में नहीं होती, उसका प्रादुर्भाव समभाव में, माध्यस्थभाव में से होता है। अत: राग-द्वेष के प्रसंग पर मध्यस्थ रहना ही सामायिक है और यह मध्यस्थता अन्तर्चेतना की ज्योति है। भगवतीसूत्र में इसी चर्चा को लेकर महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर हैं, जो द्रव्यलिंग की अपेक्षा भावलिंग को अधिक महत्त्व देते हैं। किसी व्यक्ति को जैन श्रावक की विशिष्टतर दीक्षा स्वीकार करनी हो या करवानी हो, उसके लिए छ: मासिक सामायिक व्रत का आरोपण किया जाता है। जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में सामायिक ग्रहण की अपेक्षा से दो तरह के विधान हैं __ 1. पाण्मासिक सामायिक आरोपण विधि- इसके माध्यम से छ: माह तक उभय सन्ध्याओं में सामायिक करने की प्रतिज्ञा करवायी जाती है और 2. सामायिक ग्रहणविधि- इसमें श्रावक अपनी सुविधानुसार सामायिक ग्रहण करता है।150 प्रस्तुत अध्याय में सामायिक आवश्यक का तात्पर्य सविधि सामायिक ग्रहण करने से है। अत: यहाँ उसी सन्दर्भ में चर्चा करेंगे। यदि सामायिक आवश्यक के सम्बन्ध में ऐतिहासिक दृष्टि से विचार किया जाए, तो जहाँ तक प्राचीन आगम ग्रन्थों का सवाल है उनमें सूत्रकृतांगसूत्र, भगवतीसूत्र, उपासकदशासूत्र, अंतकृद्दशासूत्र, अणुत्तरोपपातिकसूत्र और विपाकसूत्र में सामायिकव्रत स्वीकार किया गया; सामायिक (आचारांग) आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया; सात शिक्षाव्रतों (इनमें सामायिकव्रत का भी अन्तर्भाव है) को अंगीकार किया; इस तरह की चर्चाएँ तो उपलब्ध होती हैं किन्तु विधि-विधान का किंचित निर्देश भी दृष्टिगत नहीं होता है। भगवतीसूत्र में वर्णन आता है कि भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के शिष्य वैश्यपुत्र कालास नामक अणगार ने भगवान महावीर से कहा- “स्थविर सामायिक को नहीं जानते, सामायिक का अर्थ नहीं जानते।” तब भगवान ने
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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