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________________ 98...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में में शुद्ध सामायिक की प्राप्ति कर सकता है तो किसी आत्मा को इस स्थिति तक पहुँचने में अधिकतम समय भी लग सकता है, किन्तु इतना निश्चित है कि अभ्यास के बिना, बाह्य साधना के बिना सहसा आभ्यंतर साधना में प्रवेश करना असंभव ही है। जहाँ तक मन की चंचलता का प्रश्न है, उस विषय में घबराने की आवश्यकता नहीं है। मन स्थिर न भी हो, तब भी आप टोटे (घाटे) में नहीं रहेंगे। शरीर और वचन नियंत्रण का लाभ तो मिलेगा ही। यद्यपि मन, वचन और शरीर- इन तीनों शक्तियों को सावध क्रिया से निवृत्त रखने पर ही पूर्ण सामायिक होती है, किन्तु मन पर नियंत्रण न रख पाने के कारण सामायिक का सर्वथा नाश भी नहीं होता है। यदि तीनों योगों को सावध क्रिया में संलग्न कर दिया जाए, तो ही सामायिक का सर्वथा नाश संभव है अन्यथा मनसा भंग अतिचार लगता है, अनाचार नहीं। अतिचार का अर्थ- ‘दोष' है और दोष की शद्धि आलोचना एवं पश्चात्ताप आदि से हो जाती है। विवक्षा भेद से यह मानना भी ठीक है कि मानसिक शांति के बिना सामायिक पूर्ण नहीं, अपूर्ण है, परन्तु इसका यह अर्थ तो नहीं कि पूर्ण न मिले तो अपूर्ण को छोड़ दिया जाए? लौकिक जीवन में भी देखते हैं कि व्यापार में हजार का लाभ न भी हो, तो भी सौ, दो सौ का लाभ कहीं छोड़ा नहीं जाता है। आखिर, है तो लाभ ही, हानि तो नहीं है न! यदि रहने के लिए सात मंजिल का महल न मिले, तब तक झोपड़ी ही सही। कोई यह सोच ले कि मुझे सात मंजिल का महल मिलेगा, तब ही रहूंगा, तो इस प्रकार के विचार उसके स्वयं के लिए ही कष्टकारी होंगे। साथ ही उसकी गणना मूर्ख की कोटि में की जायेगी। अन्यथा झोपड़ी में रहने से भी सर्दी-गर्मी से बचाव, वर्षा आदि से बचाव आदि कई प्रकार के सुख प्राप्त किये जा सकते हैं। इस तरह व्यवहार सामायिक भी एक बहुत बड़ी साधना है। निश्चय के पीछे व्यवहार को छोड़ देना कहाँ की समझदारी है? व्यवहार के माध्यम से कम से कम स्थूल पापाचारों से तो जीवन बचा हुआ रहेगा न? सामायिक आवश्यक की ऐतिहासिक अवधारणा __जैन धर्म का सामायिक धर्म अत्यन्त विराट् एवं व्यापक है। वह आत्मा का धर्म है, अतः इसकी आराधना किसी भी जाति, देश, मत या पंथ का व्यक्ति कर सकता है। निर्ग्रन्थ धर्म में सामायिक व्रत की उपासना हेतु विशुद्ध परिणति को
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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