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________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...97 व्यवहार सामायिक भी अर्थकारी है? समभाव ही सामायिक है। समभाव का अर्थ है- बाह्य विषयों से दूर हटकर आत्म स्वरूप में स्थिर होना, लीन होना। आत्मा का काषायिक विकारों से पृथक् किया हुआ अपना शुद्ध स्वरूप ही सामायिक है और उस शुद्ध आत्म स्वरूप को प्राप्त कर लेना ही सामायिक का फल है। भगवतीसूत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आत्मा ही सामायिक है और आत्मा ही सामायिक का अर्थ फल है। इस परिभाषा के अनुसार जब तक साधक स्व-स्वरूप में अवस्थित रहता है तब तक ही सामायिक है और ज्यों ही क्रोधादि कषाय या रागादि विषय रूप संकल्प-विकल्पों से युक्त बनता है त्यों ही सामायिक से शून्य हो जाता है। इस प्रकार सामायिक के निश्चय स्वरूप को जानने वाले कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि आत्मपरिणति रूप शुद्ध सामायिक करना बहुत मुश्किल है। मन चंचल है, वह हरपल इधर-उधर भागता-दौड़ता रहता है, शरीर को स्थिर कर एक जगह बैठ भी जायें, तब भी मनोयोग न होने से पूर्ण सामायिक नहीं हो सकती। अत: इस तरह की सामायिक-क्रिया एक प्रकार से व्यर्थ ही है, तब तो मन के स्थिर होने पर ही सामायिक करनी चाहिए। __उपाध्याय अमरमुनि ने इसके समाधान हेतु महत्त्वपूर्ण तथ्य उद्घाटित किए हैं।149 वे कहते हैं निश्चय सामायिक के स्वरूप का वर्णन कर उस पर बल देने का यह भाव नहीं, कि अन्तरंग साधना अच्छी तरह से न हो, तो बाह्य साधना भी छोड़ दी जाए। बाह्य साधना भी आन्तरिक साधना के लिए अतीव आवश्यक है। सर्वथा शुद्ध निश्चय सामायिक तो साध्य है, उसकी प्राप्ति शुद्ध व्यवहार साधना करते-करते आज नहीं, तो कालान्तर में कभी न कभी होगी ही। शुद्ध सामायिक अभ्यास पर आश्रित है। कोई चाहे कि मण भर का पत्थर एक ही बार में उठा लें, अशक्य है। किन्तु प्रतिदिन क्रमश: सेर, दो-सेर, तीन-सेर आदि का पत्थर उठाते-उठाते, कभी एक दिन वह भी आ जाता है कि जब संकल्पी व्यक्ति मण भर का पत्थर एक साथ उठा सकता है। एक-एक कदम बढ़ाने वाला दुर्बल यात्री भी एक दिन अंतिम मंजिल पर पहुँच जाता है। इस तरह निश्चय सामायिक की प्राप्ति व्यवहार सामायिक पर ही आधारित है,कोई भी साधक पहली बार में ही निश्चय सामायिक नहीं कर सकता। हाँ पात्रता की अपेक्षा अभ्यासकाल में तरतमता हो सकती है। जैसे कोई साधक अल्प समय
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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