SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 90...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में उत्तर दिशा- उत्-उच्चता से, तर-अधिक अर्थात उत्तर दिशा उच्च भाव की द्योतक है। मानव का हृदय बायीं तरफ होने से वह उत्तर दिशा की ओर है। मनुष्य के देह में हृदय का स्थान सर्वोच्च माना गया है। वह आत्मा का केन्द्र स्थान है। यह कहावत है- 'जो जैसे हृदय का होता है वह वैसा बनता है। यदि हृदय में उच्च भावनाएँ हों, तो वह उच्च बनता है। लौकिक दृष्टि से भी व्यक्ति के पास श्रद्धा, निष्ठा, भक्ति-भावना का जो हिस्सा है, वह हृदय में है तथा हृदय उत्तर-दिशा की ओर रहा हुआ है। इस तरह उत्तर दिशा विराट स्वरूप को धारण करने का संदेश देती है। उत्तर दिशा के महत्त्व के सम्बन्ध में एक प्रत्यक्ष प्रमाण भी है- दिशासूचक यन्त्र। यह कुतुबनुमा में विद्यमान है। इस यन्त्र में लोहचुंबक की एक सूचिका होती है, जो हमेशा उत्तर दिशा की ओर ही घूमती रहती है। वह लोहसूचिका जड़ है, फिर भी उत्तर दिशा की ओर ही चलती रहती है, अत: मानना होगा कि उत्तर दिशा की ओर ऐसी कोई आकर्षण शक्ति है, जो लोहचुंबक को अपनी ओर खींचती जाती है। मानवीय खान-पान, हलन-चलन, रहन-सहन आदि पर उत्तर या दक्षिण दिशा का विशेष प्रभाव पड़ता है। उत्तर दिशा में स्वर्ग है ऐसी जन मान्यता है इसका रहस्य यह हो सकता है कि जैसे हृदय बायीं ओर होने से वह उत्तर दिशा की ओर है, उत्तम विचार हृदय में ही उठते हैं। जहाँ विचार उत्तम होते हैं वहाँ व्यक्ति सुखानुभूति करता है। स्वर्ग यह ऐन्द्रिक सुख का प्रतीक माना गया है अत: उत्तर दिशा में स्वर्ग की कल्पना की जाती है। उत्तर दिशा का दूसरा नाम ध्रुवदिशा भी है क्योंकि प्रसिद्ध ध्रुव नामक नक्षत्र उत्तरदिशा में स्थित है तथा उत्तर दिशा के केन्द्रीय स्थल पर स्थिर दिखाई देता है। इस प्रकार जहाँ पूर्व दिशा प्रगति, अभ्युदय, गतिशीलता का संदेश देती है वहीं उत्तरदिशा स्थिरता, दृढ़ता, निश्चयात्मकता एवं अचल आदर्श का प्रतीक है। जीवन व्यवहार में गति के साथ स्थिरता, दौड़ भाग के साथ शान्ति और स्वस्थता नितान्त अपेक्षित है। केवल गति या स्थिरता जीवन को पूर्ण नहीं बना सकते, परन्तु दोनों का सुमेल हो, तो व्यक्ति उच्चता के आदर्श शिखर पर स्थापित हो सकता है।140 जैन संस्कृति ही नहीं, वैदिक-संस्कृति में भी पूर्व और उत्तर दिशा को श्रेष्ठ कहा गया है। दक्षिण दिशा यम की और पश्चिम दिशा वरुण की बतलायी है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy