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________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...87 अकार्य आदि सब कुछ विचारशक्ति पर ही निर्भर हैं और तो क्या, हमारा सारा जीवन ही विचाराधीन है। विचारों पर ही हमारा जन्म, मृत्यु, उत्थान, पतन आदि सब कुछ निर्भर है। विचारों का वेग तीव्रतम है। आधुनिक विज्ञान कहता है कि प्रकाश की गति एक सैकेण्ड में 1,80,000 मील है, विद्युत की गति 2,88,000 मील है, जबकि विचारों की गति 22,65,120 मील है। ___प्रश्न हो सकता है कि तीव्रगामी मन को नियंत्रित कैसे करें? मन पवन से भी सूक्ष्म है। मन की गति बड़ी विचित्र है। जैन ग्रन्थों में कहा गया है- 'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयोः' अर्थात मन ही मनुष्य के बन्ध और मोक्ष का कारण है। इसका समाधान यही है कि व्यक्ति संकल्पशक्ति के बल पर मन को नियंत्रित कर सकता है। 5. वचन शुद्धि- सामायिक साधना की सफलता के लिए वचन शुद्धि भी अनिवार्य मानी गई है। जहाँ तक हो, मौन रखना, यदि न बन सके तो उचित, सीमित, परिमित बोलना ही वचनशद्धि है। घर गृहस्थी की बातें करना, अनावश्यक धर्मचर्चा (तर्क-वितर्क) करना, किसी की निन्दा-चुगली करना, वचन की अशुद्धि है। ___6. काय शुद्धि- यहाँ कायशुद्धि का अभिप्राय देह शुद्धि से है, न कि शरीर को सजा-धजाकर रखने से। आन्तरिक आचार का भार मन पर है और बाह्य आचार का भार शरीर पर। मनुष्य द्वारा उठने-बैठने में, खड़े होने में, अंगों को हिलाने-डुलाने में विवेक रखना काय शुद्धि है। सामायिक करते समय भूमि की शुद्धता का ध्यान रखना भी आवश्यक है। जिस प्रकार शुद्धभूमि में वपन किया गया बीज फलदायक होता है, उसी प्रकार सामायिक की साधना भी फलवती बनती है। __ डॉ. सागरमलजी जैन ने सामायिक साधना के लिए चार शुद्धियों का उल्लेख किया है- 1. कालशुद्धि 2. क्षेत्रशुद्धि 3. द्रव्यशुद्धि और 4. भावशुद्धि। इनमें प्रारम्भ की तीन शुद्धियाँ पूर्वोक्त ही है। अन्तिम भाव शुद्धि मन शुद्धि के तुल्य है। वस्तुतः द्रव्य शुद्धि, काल शुद्धि और क्षेत्र शुद्धि साधना के बहिरंग तत्त्व हैं और भाव विशुद्धि साधना का अंतरंग तत्त्व है। यहाँ भाव शुद्धि से तात्पर्य मन शुद्धि है। मन की विशुद्धि ही सामायिक साधना का सार है। आदरणीय डॉ. सागरमलजी जैन के निर्देशानुसार चित्त विशुद्धि के लिए दो
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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