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82... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
तीर्थंकर और गणधर पुरुषों ने किया है। निश्चयदृष्टि से सामायिक का अनुष्ठान करने वाला ही सामायिक का कर्त्ता है क्योंकि सामायिक का परिणाम उस अनुष्ठाता से भिन्न नहीं रहता है। 127 इससे स्पष्ट है कि सामायिक का वास्तविक कर्त्ता सामायिक करने वाला ही है। प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर को छोड़कर शेष बावीस तीर्थंकर सामायिक संयम का उपदेश देते हैं। 128
सामायिक में चिन्तन योग्य भावनाएँ
जो साधक सामायिक करने के लिए तत्पर है, वह 48 मिनट के काल में समभाव की वृद्धि हेतु 10 मिनट आत्मा का विचार करे। जैसे- मैं कहाँ से आया हूँ, मैं कहाँ जाऊँगा, मैं क्या लेकर आया हूँ, क्या लेकर जाऊँगा, मेरे देव कौन हैं, मेरे गुरु कौन हैं, मेरा धर्म कौनसा है, मेरा कुल क्या है, मेरे कर्त्तव्य कौनसे हैं? 10 मिनट महामंत्र नवकार का जाप करें, 10 मिनट तीर्थयात्रा की भावना करें, 10 मिनट स्वाध्याय करें और अन्तिम 8 मिनट कायोत्सर्ग अथवा स्वाध्याय करें। इस प्रकार सामायिक के श्रेष्ठकाल को पूर्णतः सफल बनाएँ ।
मन चंचल है यदि इसे सही मार्ग में न जोड़ा जाए तो समभाव के स्थान पर राग-द्वेष के झंझावात आ सकते हैं, अतः भावनाओं को उक्त रीति से सतत जोड़े रखना चाहिए। दिगम्बर आचार्यों के अनुसार सामायिक व्रत में उपस्थित श्रावक इस प्रकार का शुभ ध्यान करें - मैं अनित्य, दुःखमय और पररूप संसार में निवास करता हूँ, मोक्ष इससे भिन्न है। 129 यह मेरी आत्मा ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य गुण से सम्पन्न है। कषाय आदि इसकी वैभाविक परिणति है। यह जन्म-मृत्यु, रोग-जरा, सर्दी-गर्मी, रूप-स्पर्श आदि से रहित है - इस तरह स्वभाव दशा का मनन करें । अनित्य आदि बारह एवं मैत्री आदि चार भावनाओं का चिन्तन करें। अरिहन्त आदि पंच परमेष्ठी स्वरूप का ध्यान करें। 130 सामायिक की उपस्थिति किन जीवों में?
कौनसे जीव किस सामायिक के आराधक हो सकते हैं? आवश्यकनिर्युक्ति के अनुसार सम्यक्त्वसामायिक और श्रुतसामायिक के अधिकारी चारों गतियों के जीव हो सकते हैं। सर्वविरतिसामायिक के अनुष्ठाता केवल मनुष्य तथा देशविरतिसामायिक के अधिकारी मनुष्य और तिर्यंच - दोनों होते हैं। ये सामायिक के स्तर जीवों की तरतम योग्यता के आधार पर बतलाए गए हैं। 13