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________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...83 सामायिक का उद्देश्य आवश्यकनियुक्तिकार के अनुसार सामायिक एकमात्र पूर्ण और पवित्र अनुष्ठान है। यह गृहस्थ के अन्यान्य धर्मों में प्रधान है, परम है, आत्महितकारी और मोक्षप्रदाता है अत: इसकी आराधना सावद्ययोग से बचने के लिए की जाती है।132 . सामायिक की साधना का मुख्य ध्येय समभाव है। समभाव को समत्व, समता, उदासीनता या मध्यस्थता कहते हैं। समभाव को प्राप्त करने वाला साधक भाव समाधि में प्रवेश करता है और अत्यन्त उत्कृष्ट स्थिति अर्थात मुक्तिपथ का वरण भी कर लेता है। इस प्रकार समभाव का परिणाम निराबाध सुख, परम आनंद और आत्मिक शान्ति है। साध्य-साधक और साधना का परस्पर सम्बन्ध प्रत्येक अनुष्ठान की सिद्धि साध्य, साधक और साधना- इन तीनों की योग्यता एवं शुद्धि पर अवलंबित है। यदि साध्य योग्य न हो तो उसके लिए की गई साधना निष्फल है। यदि साधक योग्य न हो, तो वह समुचित साधना कर नहीं सकता। यदि साधना सम्यक् न हो, तो सिद्धि प्राप्त होना असंभव है। अतएव कार्यसिद्धि के लिए साध्य, साधक और साधना की योग्यता (विशुद्धि) होना जरूरी है। मोक्ष प्राप्त करना साध्य है, व्रत का पालन करने वाला साधक है और सामायिक साधना है। सामायिकधारी को साध्य, साधक एवं साधना का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। सामायिक में चित्त शांति के उपाय साधना की सिद्धि में मन की चंचलता प्रमुख बाधक तत्त्व है। सामायिक साधना में मन की स्थिरता बनी रहे, तद्हेतु कुछ उपाय कहे गए हैं यथा1. वातावरण निर्मल हो, क्योंकि वातावरण का प्रभाव अधिक असरकारक होता है 2. आसन स्थिर हो- शरीर को अधिक हिलाए-डुलाए बिना एक आसन में बैठने का प्रयास हो 3. अनानुपूर्वी का पठन हो- यह मन स्थिर करने का सरलतम उपाय है 4. नमस्कारमंत्र का जाप हो 5. स्वाध्याय हो- धार्मिक-ग्रन्थों का पठन या श्रवण हो 6. कायोत्सर्ग की साधना हो और 7. ध्यान हो। ये उपाय चित्त को स्थिर बनाए रखते हैं। असल में, सामायिक करने वाले
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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