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________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...81 चित्तवृत्ति को शान्त रखना, सभी जीवों को आत्मवत समझना, गुणीजनों को देखकर हर्षित होना, दीन-दुःखियों के प्रति करूणा भाव उत्पन्न करना वगैरह सम्यक् पथ्य का आचरण करना भी अत्यावश्यक है। दूसरे, इस साधना में प्रवेश करने से पहले मन, वचन एवं शरीर को सुसंस्कृत बना लेना भी आवश्यक है, इसी उद्देश्य से बारह व्रतों में सामायिक का स्थान नौवाँ है। इसके पूर्ववर्ती आठ व्रत साधक के सांसारिक वासनाजन्य क्षेत्र को मर्यादित करने एवं सामायिक की योग्यता प्रकट करने के लिए हैं। जो व्यक्ति अहिंसा आदि आठ व्रतों को सम्यक् रूप से स्वीकार करते हुए सामायिक साधना के महल में प्रवेश करता है, वह इसका साक्षात फल प्राप्त करता है। विशेषावश्यकभाष्य के अनुसार प्रियधर्मा, दृढ़धर्मा, संविग्न, पापभीरू, निष्कपट, क्षान्त, दान्त, गुप्त, स्थिरव्रती, जितेन्द्रिय, ऋजु, मध्यस्थ और साधु संगति में रत-इन गुणों से सम्पन्न गृहस्थ सामायिक करने के योग्य होता है।125 अनयोगद्वार में निर्दिष्ट है कि जिस व्यक्ति की आत्मा संयम, नियम और तप में जागरूक है तथा जो त्रस और स्थावर, सब प्राणियों के प्रति समभाव रखता है उसे ही सामायिक व्रत होता है।126 प्रचलित परम्परा में निम्न योग्यताएँ भी सामायिकधारी के लिए आवश्यक मानी गई हैं जैसे • सामायिक इच्छुक देशविरति या सर्वविरति का पालन करने वाला होना चाहिए। • निरन्तर सामायिक का अभ्यासी एवं सामायिक के प्रति पुरुषार्थ करने वाला होना चाहिए। • देव, गुरु और धर्म के प्रति अनन्य श्रद्धा रखने वाला होना चाहिए। • पाँच अणुव्रतों और तीन गुणव्रतों का धारक होना चाहिए। इससे ध्वनित है कि सामायिक की फलप्राप्ति के इच्छुक सामायिकव्रती को यदि सामान्य व्रत का भी अभ्यास न हो, तो वह सामायिक जैसी उत्कृष्ट साधना कैसे कर सकता है? इस दृष्टि से भी सामायिक व्रती को उक्त गुणों से युक्त होना चाहिए। सामायिक का प्रारंभ कर्ता कौन? सामायिक का प्रथम उपदेशक कौन है? इस सम्बन्ध में विचार करते हुए जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ने कहा है कि व्यवहार दृष्टि से सामायिक का प्रतिपादन
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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