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________________ 70...षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में ऋषभदेव और अन्तिम तीर्थंकर महावीर स्वामी पाँच महाव्रतों का उपदेश करते हैं। तात्पर्य है कि प्रथम एवं अन्तिम तीर्थंकर के शासनकाल में पाँचों चारित्र होते हैं और मध्य के बाईस तीर्थंकरों के शासनकाल में प्रमुख रूप से सामायिक चारित्र ही होता है। इस प्रकार सभी तीर्थंकरों के समय सामायिक चारित्र निश्चित रूप से अवस्थित रहता है।109 __इसका कारण बतलाते हुए उल्लिखित किया है कि बाईस तीर्थंकरों के शिष्य ऋजुप्राज्ञ अर्थात सरल एवं बुद्धिमान होने से उनके लिए सर्वसावद्य योग के त्याग रूप एक सामायिक चारित्र ही पर्याप्त होता है जबकि प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के शिष्य ऋजु जड़-सरल स्वभावी और अज्ञानी तथा अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर के शिष्य वक्रजड़- कुटिल परिणामी और जड़स्वभावी होने के कारण संयम शुद्धि हेतु छेदोपस्थापना आदि शेष चारित्र के परिपालन की आवश्यकता रहती है।10 आचार्य शुभचन्द्र ने सामायिक की आवश्यकता क्या है? इसका हृदयप्रभावी चित्रण करते हुए कहा है कि राग-द्वेष और मोह के अभाव में समताभाव प्रकट होता है, इसके द्वारा ही मोक्ष के कारणभूत ध्यान की सिद्धि होती है। मोह रूपी अग्नि को उपशांत, संयम रूपी लक्ष्मी को प्राप्त तथा राग रूपी वृक्ष का समूलत: उच्छेदन करने के लिए सामायिक का आलम्बन आवश्यक है। ___आचार्य शुभचन्द्र लिखते हैं जिस पुरुष का मन सजीव और निर्जीव तथा इष्ट और अनिष्ट पदार्थों के द्वारा मोहदशा को प्राप्त नहीं होता है, वह साम्य है और वही समत्वयोग को प्राप्त होता है। उनकी दृष्टि में समत्वयोग से ही परमात्मपद की प्राप्ति सम्भव है। व्यक्ति समत्वयोग का आलम्बन लेकर ही अपने शुद्ध आत्मस्वरूप का बोध करता है तथा जीव और कर्म को पृथक् करता है। वस्तुतः जिसका समभाव रूपी जल शुद्ध है और ज्ञान ही नेत्र हैं, ऐसे सत्पुरुष का ही अनन्तज्ञान रूपी लक्ष्मी वरण करती है। इस जीव के साथ अनादिकाल से बद्ध राग-द्वेष रूपी वन मोहरूपी सिंह से रक्षित है, इसे समभावरूपी अग्नि की ज्वाला ही दग्ध करने में समर्थ है। जब व्यक्ति के जीवन में मोहरूपी कीचड़ सूख जाता है तब रागादि के बन्धन भी दूर हो जाते हैं फलतः उसके चित्त में जगत-पूज्य समभाव रूपी लक्ष्मी निवास करने लगती है।
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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