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58... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
आगमन होने के कारण अथवा देवों के द्वारा संहरण होने के कारण वहाँ सर्वविरति सामायिक पूर्वक चारों सामायिक की उपलब्धि हो सकती है। 48
देवकुरु-उत्तरकुरु आदि अकर्मभूमियों में उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी काल का अभाव होता है। अत: वहाँ केवल सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक होती हैं । 49 स्पष्टीकरण हेतु तालिका इस प्रकार हैं
क्षेत्र
काल
सामायिक
सम्यक्त्व और श्रुत सम्यक्त्व और श्रुत
सुषम-दुःषमा
सम्यक्त्व और श्रुत
6. पुरुष - व्यवहार दृष्टि से सामायिक का प्रतिपादन तीर्थंकर और गणधरों ने किया। निश्चय नय के अनुसार सामायिक का विधिवत अनुष्ठान करने वाला व्यक्ति सामायिक का कर्त्ता है। 50
1-2
3-4
5-6
देवकुरु-उत्तरकुरु हरिवर्ष- रम्यकवर्ष
हैमवत - ऐरण्यवत
सुषमा- सुषमा
सुषमा
7. कारण- तीर्थंकर परमात्मा तीर्थंकर नामगोत्र का वेदन करने के लिए सामायिक अध्ययन की प्ररूपणा करते हैं। गौतम आदि ग्यारह गणधर ज्ञानवृद्धि के लिए और मंगल भावों की उपलब्धि के लिए सामायिक का श्रवण करते हैं। 51
8. प्रत्यय— ‘मैं केवलज्ञानी हूँ' इस प्रत्यय अर्थात मानसिक विचार से आप्तपुरुष सामायिक का कथन करते हैं। सुनने वालों को यह प्रत्यय होता है कि 'ये सर्वज्ञ हैं' इसलिए वे सुनते हैं । 52
9. लक्षण– सम्यक्त्व सामायिक का लक्षण है - तत्त्वश्रद्धा। श्रुतसामायिक का लक्षण है- जीव आदि का परिज्ञान । चारित्रसामायिक का लक्षण हैसावद्ययोग से विरति । 53
10. नय— विभिन्न नयों के अनुसार सामायिक क्या है ? नैगम नय के अनुसार सामायिक अध्ययन के उद्दिष्ट शिष्य यदि वर्तमान में सामायिक का अध्ययन नहीं कर रहा है, तब भी वह सामायिक है।
संग्रह नय और व्यवहार नय के अनुसार सामायिक अध्ययन को पढ़ने के लिए गुरु के चरणों में आसीन शिष्य सामायिक है।
ऋजुसूत्र नय के अनुसार अनुयोगपूर्वक सामायिक अध्ययन को पढ़ने वाला शिष्य सामायिक है।
शब्द आदि तीनों नयों के अनुसार शब्द क्रिया से रहित सामायिक में उपयुक्त शिष्य सामायिक है,क्योंकि इनके अनुसार विशुद्ध परिणाम ही सामायिक है। 54