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54... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में
स्थापित की गई वस्तु स्थापना सामायिक है। 34
3. द्रव्य सामायिक- स्वर्ण और मिट्टी दोनों प्रकार के पदार्थों में समभाव रखना द्रव्य सामायिक है। दिगम्बर आचार्यों ने कुछ भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ प्रस्तुत की हैं जैसे- कषायपाहुड के अनुसार सचित्त और अचित्त द्रव्यों में राग और द्वेष का निरोध करना द्रव्य सामायिक है। 35 गोम्मटसार में यही स्वरूप बतलाया गया है। अनगार धर्मामृत में आगम और नोआगम ऐसे दो प्रभेद करते हुए वर्णित किया है कि सामायिक विषयक शास्त्र का ज्ञाता, किन्तु उसमें अनुपयुक्त जीव और उसका शरीर तथा उनके विपक्षी भावी जीव और कर्म - नोकर्म (यहाँ सामायिक के द्वारा उपार्जित तीर्थंकरत्व आदि कर्म हैं तथा सामायिक विषयक आगम को पढ़ाने वाला उपाध्याय, पुस्तक आदि नोकर्म तद्व्यतिरिक्त हैं ) इनमें किसी प्रकार का अच्छा या बुरा अभिनिवेश न करना, द्रव्य सामायिक है | 36
वस्तुतः शरीर आदि सभी पर द्रव्य हैं। वे स्वद्रव्य के कैसे हो सकते हैं ? जो योग का अभ्यासी होता है वह तो स्वद्रव्य में अभिनिवेश (मिथ्या आरोपण या आग्रह बुद्धि) रखता है किन्तु जो उसमें परिपक्व हो जाता है उसके लिए स्वद्रव्य में अभिनिवेश भी त्याज्य है । पद्मोत्तर पंचविंशिका में कहा गया है कि पहुँचे हुए साधक को 'मैं मुक्त हूँ', 'मैं कर्मों से कष्टित हूँ' ऐसा विकल्प भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक आत्मा निर्विकल्प दशा को उपलब्ध करके मोक्षपद को प्राप्त करता है अतः सभी तरह के विकल्प त्याज्य हैं।
4. क्षेत्र सामायिक - चाहे महल हो या उपवन, समतल भूमि हो या बंजर भूमि, शान्त वातावरण हो या कोलाहल भरा, प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहना, तनावमुक्त रहना, चित्त को शांत रखना क्षेत्र सामायिक है।
प्रत्येक द्रव्य का क्षेत्र उसके अपने प्रदेश हैं, निश्चय से उसी में उस द्रव्य का निवास है। बाह्य क्षेत्र तो व्यावहारिक है, वह तो बदलता रहता है, उसके विनाश से आत्मा की कुछ भी हानि नहीं होती, अतः आत्मभावों में स्थिर रहना क्षेत्र सामायिक है।
5. काल सामायिक - शीतकाल हो या उष्ण, अनुकूल स्थिति हो या प्रतिकूल, उसका मन पर कोई आसन नहीं होना अथवा व्याकुल नहीं होना काल सामायिक है।
काल सामायिक करने वाला यह चिन्तन करे कि निश्चय कालद्रव्य तो