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सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण... 53
आचार्य कुन्दकुन्दकृत कषायप्राभृत में सामायिक के निम्न चार प्रकार बतलाये हैं- 1. द्रव्य सामायिक 2. क्षेत्र सामायिक 3. काल सामायिक और 4. भाव सामायिक।29 इन भेदों का स्वरूप आगे बताया जा रहा है -
षड्विध-भेद - अनगार धर्मामृत, गोम्मटसार आदि ग्रन्थों में सामायिक छ: प्रकार की बतलायी गयी है- 1. नाम 2. स्थापना 3. द्रव्य 4. क्षेत्र 5. काल और 6. भाव | 30
1. नाम सामायिक - कोई हमें शुभ नाम से बुलाए या अशुभ नाम से, उस नाम का श्रवण कर अन्तर्मानस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना अथवा सामने वाले के प्रति राग-द्वेष का भाव न आना नाम सामायिक है।
अनगारधर्मामृत के अनुसार किसी मित्र के द्वारा सम्यक् नाम से बुलाए जाने पर उससे राग नहीं करूंगा और शत्रु के द्वारा अप्रशस्त नाम का प्रयोग करने पर द्वेष नहीं करूंगा, क्योंकि मैं वचन के गोचर नहीं हूँ यानी आत्मा शब्द का विषय नहीं है- इस प्रकार का संकल्प करना नाम सामायिक है । 31 अनगार धर्मामृत की टीका में कहा गया है - जाति, द्रव्य, गुण, क्रिया की अपेक्षा से रहित किसी का नाम सामायिक रखना, नाम सामायिक निक्षेप है तथा अच्छेबुरे नामों को सुनकर द्वेष नहीं करना नाम सामायिक है । गोम्मटसार में यही परिभाषा दी गई है | 32
2. स्थापना सामायिक - सामान्यतया आकर्षक वस्तुओं को देखकर राग नहीं करना और घृणित वस्तुओं को देखकर द्वेष नहीं करना स्थापना सामायिक है। पं. आशाधरजी स्थापना सामायिक का स्वरूप बतलाते हुए कहते हैं - सुन्दर आकार रूप विशिष्ट प्रतिमा को देखकर यह विचार करना कि यह अर्हन्त स्वरूप का स्मरण करवाती है किन्तु मैं उस अरिहन्त स्वरूप नहीं हूँ तब इस प्रतिमा स्वरूप तो हो ही नहीं सकता हूँ। इसलिए मेरी बुद्धि इस प्रतिमा में न तो सम्यक् रूप से अवस्थित है और न उससे विपरीत ही है। इस प्रकार अरिहन्त प्रतिमा के शास्त्रोक्त रूप को देखकर न राग करना और विपरीत स्वरूप को देखकर द्वेष भी नहीं करना, स्थापना सामायिक है। 33
आचार्य नेमिचन्द्र पूर्व मत का अनुसरण करते हुए यह कहते हैं कि मनोज्ञ-अमनोज्ञ स्त्री-पुरुष आदि के आकारों में अथवा उनके चित्रों में राग- - द्वेष की बुद्धि नहीं रखना स्थापना सामायिक है अथवा 'यह सामायिक है' इस प्रकार