SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 48... षडावश्यक की उपादेयता भौतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ में जाए तो समता ही सामायिक है। सभी जैनाचार्यों ने समता पर विशेष बल दिया है। आत्मस्थिरता, राग-द्वेष का त्याग, सावद्ययोगनिवृत्ति, आत्मगुणों की वृद्धि वगैरह समत्व भाव के ही द्योतक हैं। अतः राग-द्वेष या अनुकूल-प्रतिकूल के विविध प्रसंग समुपस्थित होने पर आत्म स्वभाव में तटस्थ रहना सामायिक है। भगवद्गीता में समत्व को योग कहा गया है। 19 निश्चयनय से आत्मा ही सामायिक है और सामायिक का अर्थ है आत्मा की स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त करना, उसमें तल्लीन होना - यही सामायिक है। 20 इसी अभिप्रेत को स्पष्ट करते हुए आवश्यकनियुक्तिकार ने कहा हैजिसकी आत्मा संयम, तप और नियम में संलग्न रहती है वही शुद्ध सामायिक है। 21 आवश्यकटीका के अनुसार सावद्ययोग (पाप - व्यापार) से रहित, तीन गुप्तियों से युक्त, षड्जीवनिकायों में संयत, उपयोगवान, यतनाशील आत्मा ही सामायिक है।22 परमार्थतः आत्मा ही सामायिक है अथवा सामायिक आत्मा की शुद्ध अवस्था का नाम है। सामायिक का अर्थ गांभीर्य सामायिक अर्थात राग-द्वेष रहित अवस्था • पीड़ा का परिहार • समभाव की प्राप्ति सर्वत्र तुल्य व्यवहार • ज्ञान - दर्शन - चारित्र का पालन • चित्तवृत्तियों के उपशमन का अभ्यास • समभाव में स्थिर रहने का अभ्यास • सर्व जीवों के प्रति समान वृत्ति का अभ्यास • सर्वात्मभाव का अभ्यास • 48 मिनट का श्रमण जीवन • संवर की क्रिया एवं आस्रव का वियोग • सद्व्यवहार • आगमानुसारी शुद्ध जीवन जीने का अनुपम प्रयास • समस्थिति • विषमता का अभाव बन्धुत्वभाव का शिक्षण शान्ति की साधना • अहिंसा की आराधना • श्रुतज्ञान की सात्त्विक उपासना • अन्तर्दृष्टि का आविर्भाव • उच्चकोटि का आध्यात्मिक - अनुष्ठान अन्तर्चेतना में निहित स्वाभाविक गुणों का प्रकटीकरण • स्वयं की पर्यायों को स्वयं में अनुभूत करने की सहज क्रिया • ममत्वयोग से हटकर अन्त:करण को समत्वयोग में नियोजित करना • आवश्यक क्रिया का प्रथम चरण • आत्म रिसर्च का सेंटर • जैन दर्शन का प्रारम्भ • संसार समुद्र से तिरने का श्रेष्ठ जहाज • मैत्री, प्रमोद, करुणा एवं · •
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy