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________________ सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...47 इस प्रकार विशेषावश्यकभाष्य में साम, सम्म, सम, समाय, सामाय आदि शब्दों का प्रयोग करके सामायिक की व्याख्या की गई है। सामायिक की शास्त्रीय परिभाषाएँ उत्तराध्ययनसूत्र में सुख-दुःख, जीवन-मरण, लाभ-अलाभ, निन्दा-प्रशंसा में समभाव रखने को सामायिक कहा गया है। मूलाचार में सामायिक की विविध परिभाषाएँ दी गई हैं उनमें मुख्यत: समता को सामायिक कहा है। सामान्यतया सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, संयम और तप के साथ जो प्रशस्त समागम है, वह समय है और वही सामायिक है। द्रव्य, गुण और पर्याय के समवाय अर्थात स्वरूप को तथा सद्भाव अर्थात परमार्थ रूप को जानना उत्तम सामायिक है। त्रस-स्थावर रूप सर्व प्राणियों को सिद्ध के समान शुद्ध जानना सामायिक है। दुर्गतिजनक राग-द्वेषादि परिणामों से आत्मा को विकृत न करना परम सामायिक है।10 यहाँ जीवन-मरण, लाभ-हानि, संयोग-वियोग, मित्र-शत्रु, सुख-दुःख आदि में राग-द्वेष न करके इनमें समभाव रखने को भी सामायिक कहा है।11 धवला टीका एवं अमितगति श्रावकाचार में सामायिक की यही परिभाषा स्वीकार की गई है।12 भावपाहुड टीका के अनुसार सर्व जीवों में समान भाव रखना सामायिक है।13 अमितगतिरचित योगसार में राग-द्वेष रूप बुद्धि का त्याग कर आत्मस्वरूप में लीन होने को सामायिक कहा है।14। नियमसार और राजवार्तिक में आत्मस्वभाव में स्थिर होने, श्रुत ज्ञान के द्वारा चित्त को निश्चल रखने एवं सावधयोग से निवृत्त होने को सामायिक कहा गया है।15 अनगारधर्मामृत में संयम, नियम एवं तप आदि के साथ तादात्म्य भाव स्थापित करने को सामायिक बतलाया है।16 कषायपाहुड के उल्लेखानुसार प्रातः, मध्याह्न एवं सायं- इन तीनों सन्ध्याओं में अथवा पक्ष और मास के सन्धि दिनों में अथवा अपने इष्ट समय में बाह्य परिग्रहादि रूप और अन्तरंग राग-द्वेषादि रूप कषाय का निरोध करना सामायिक है।17 गोम्मटसार में नित्यनैमित्तिक क्रिया विशेष और सामायिक का प्रतिपादक शास्त्र को भी सामायिक कहा गया है।18 उपर्युक्त व्युत्पत्तियों एवं परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्ष रूप में कहा
SR No.006248
Book TitleShadavashyak Ki Upadeyta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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