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सामायिक आवश्यक का मौलिक विश्लेषण ...45
• सामायिक शब्द 'सम्' उपसर्ग और गत्यार्थक ‘इण्' धातु से निष्पन्न है। संस्कृत व्याकरण के नियमा अनुसार सम् + आय + इक् प्रत्यय के संयोग से सामायिक शब्द की उत्पत्ति होती है।
• 'समय' शब्द आत्मा, सिद्धान्त और काल का वाचक है। यहाँ विवक्षा भेद से तीनों अर्थ अभीष्ट हैं यद्यपि 'आत्मा' अर्थ मुख्य है। 'आय' का शाब्दिक अर्थ है- लाभ। जिसके द्वारा आत्म गुणों का लाभ हो अथवा जिसके द्वारा वीतराग प्रणीत सिद्धान्त (समत्व योग) का अनुसरण किया जाए अथवा जो कार्य नियत समय पर करने योग्य हो, वह सामायिक है।
• सामायिक के साम, सम्म और सम- ये तीन शब्द प्राप्त होते हैं। साम का अर्थ है- 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' के समान आचरण करना। सम का अर्थ हैराग-द्वेष जन्य स्थितियों में मध्यस्थ रहना, तराजु की भाँति एक समान अध्यवसाय रखना। सम्म का अर्थ है- आत्मा के साथ एकत्व रूप व्यवहार
करना।
• सम् + आय के समय और सामाय- ये दो शब्द भी प्राप्त होते हैं। जैनाचार्यों ने इन्हीं शब्दों के आधार पर सामायिक के अनेक अर्थ बतलाये हैं। सर्वार्थसिद्धि में सामायिक का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ करते हुए कहा गया है कि सम्-एकीभाव, अय्-गमन अर्थात एकत्व भाव द्वारा बाह्य परिणति से मुड़कर पुन: आत्म दिशा की ओर गमन करना समय है, समय का भाव सामायिक है।
• तत्त्वार्थ राजवार्तिक के अनुसार आय अर्थात जीव हिंसा के हेतुभूत परिणाम, उस आय या अनर्थ का सम्यक् प्रकार से नष्ट हो जाना समाय है अथवा सम्यक् आय अर्थात आत्मा के साथ एकीभूत होना समाय है उस समाय में स्थित होना अथवा समाय ही जिसका प्रयोजन है वह सामायिक है। इसका तात्पर्य है कि हिंसादि अनर्थकारी प्रवृत्ति से सतर्क रहना सामायिक कहलाता है।
• चारित्रसार में सामायिक का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ निम्न रूप से बतलाया गया है- सम्यक् प्रकार से प्राप्त होना अर्थात एकान्त रूप से आत्मा में तन्मय हो जाना समय है अथवा मन, वचन एवं शरीर की दुष्प्रवृत्ति का परित्याग कर आत्मस्वभाव में स्थित हो जाना समय है, समय का भाव ही सामायिक है अथवा समय जिसका प्रयोजन है, वह सामायिक है।
• गोम्मटसार के निर्देशानुसार ‘सम्' अर्थात एकत्वभाव से, 'आय'