SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन वाङ्मय में प्रायश्चित्त के प्रकार एवं उपभेद...33 आगम की 80 गाथाओं का अर्थ सहित चिन्तन करना = एक पंचोला आगम की 100 गाथाओं का अर्थ सहित चिन्तन करना। ____ = छह उपवास इसी तरह बीस-बीस गाथाओं के ध्यान को बढ़ाते जायें तो उसकी तुलना में क्रमश: एक-एक उपवास अधिक समझना चाहिए। • पोष या माघ महीने में पछेवड़ी (चद्दर) को बिना ओढ़े आगम की 13 गाथाओं का ध्यान करें तो एक उपवास, 25 गाथाओं का दो उपवास, 50 गाथाओं का चार उपवास और 100 गाथाओं का ध्यान करें तो दस उपवास उतरते हैं। . पोष या माघ महीने की रात्रि में केवल आठ हाथ का वस्त्र पहने और ओढ़े तो प्रायश्चित्त रूप में प्राप्त एक तेला, तेईस हाथ ओढ़े-पहने तो एक बेला, अड़तीस हाथ ओढ़े-पहने तो एक उपवास उतरता है। • वैशाख तथा ज्येष्ठ महीने में एक प्रहर तक आतापना ली जाए तो एक तेला उतरता है। आचार्य वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर में अत्यन्त असमर्थ एवं तप विमुख अपराधियों के लिए नवकारसी आदि तपों की तुलना नमस्कारमन्त्र के साथ की गई है। जो व्यक्ति किसी तरह की तपश्चर्या नहीं कर सकते हैं वे निर्धारित नमस्कार मन्त्र का जाप करके भी प्रायश्चित्त रूप में प्राप्त तपस्या की आपूर्ति कर सकते हैं। आचार दिनकर वर्णित तालिका इस प्रकार है .44 बार नमस्कार मन्त्र का जाप करने से डेढ़ नवकारसी या एक अर्द्धपौरुषी का लाभ मिलता है। इससे प्रायश्चित्त के रूप में दिया गया उतना तप उतरता है। • 83 बार नमस्कार मन्त्र का जाप करने से दो अर्द्धपौरुषी अथवा एक पौरुषी का लाभ मिलता है। • 125 बार नमस्कार मन्त्र का जाप करने से तीन अर्द्धपौरुषी अथवा एक पुरिमड्ड का लाभ मिलता है। • 200 बार नमस्कार मन्त्र का जाप करने से चार अर्द्धपौरुषी, ढ़ाई पौरुषी अथवा एक पुरिमड्ढ का या दो पाद कम एक अवड्ढ का लाभ मिलता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy