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34...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• 250 बार नमस्कार मन्त्र का जाप करने से छह अर्द्ध पौरुषी, एक पाद कम तीन पौरुषी, दो पुरिमड्ढ, डेढ अपराह्न अथवा एक बियासना का लाभ मिलता है।
• 500 बार नमस्कार मन्त्र का जाप करने से सवा छह पौरुषी, चार पुरिमड्ढ, ढाई अवड्ढ, दो बियासना अथवा एक एकासन का लाभ मिलता है।
• 667 बार नमस्कार मन्त्र का जाप करने से पन्द्रह अर्द्धपौरुषी, आठ पौरुषी, साढ़े पाँच पुरिमड्ढ, साढ़े तीन अवड्ढ, तीन बियासना, डेढ़ एकासना अथवा एक नीवि का लाभ मिलता है।
• 1000 बार नमस्कार मन्त्र का जाप करने से बाईस अर्द्ध पौरुषी, बारह पौरुषी से कुछ अधिक, आठ पुरिमड्ढ, पाँच अवड्ढ, चार बियासना, दो एकासना, डेढ़ नीवि अथवा एक आयम्बिल का लाभ मिलता है।
• 2000 बार नमस्कार मन्त्र का जाप करने से पैंतालीस अर्द्धपौरुषी, चौबीस पौरुषी, सोलह पुरिमड्ढ, तीन नीवि, दो आयंबिल अथवा एक उपवास का लाभ मिलता है। ____ जिस प्रकार गुरुव्रत अर्थात बड़ा तप करने पर लघुव्रत का उसी में समावेश हो जाता है उसी प्रकार लघुव्रत से भी गुरुव्रत पूर्ण हो जाता है। प्रायश्चित्त एवं उपधान सम्बन्धी तपों में यह परिवर्तन अर्थात गुरुव्रत के स्थान पर लघुव्रत अशक्ति आदि होने पर ही करना चाहिए। यदि शक्ति हो तो लघुव्रत सहित गुरुव्रत करें। तप सम्बन्धी विधानों एवं अन्य कार्यों में जो तप कहा गया है, उसे वैसे ही करें। उनमें मानदंडों की तालिका का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
आचारांगनियुक्ति के अनुसार उपवास के अन्य मानदंडों का कोष्ठक इस प्रकार है
• एक उत्कृष्ट आयंबिल करने पर एक उपवास बराबर तप होता है।
यहाँ उत्कृष्ट आयंबिल का तात्पर्य- केवल उबले हुए चावल और गर्म किया गया पानी- ऐसे दो द्रव्यों को ग्रहण करना है।
• दो अनुत्कृष्ट आयंबिल करने पर एक उपवास बराबर तप होता है। • पैंतालीस नवकारसी करने पर एक उपवास बराबर तप होता है। • चौबीस पौरुषी करने पर एक उपवास बराबर तप होता है। • दो अवड्ढ करने पर एक उपवास बराबर तप होता है।