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जैन वाङ्मय में प्रायश्चित्त के प्रकार एवं उपभेद...35
• तीन नीवि करने पर एक उपवास बराबर तप होता है। • चार एकलठाणा करने पर एक उपवास बराबर तप होता है। • सोलह पुरिमड्ढ करने पर एक उपवास बराबर तप होता है। • चार एकासना करने पर एक उपवास बराबर तप होता है। • आठ बियासना करने पर एक उपवास बराबर तप होता है।
उपाध्याय क्षमाकल्याणजी (वि.सं. 18वीं शती) विरचित प्रायश्चित्त विधि में एक उपवास के बराबर नवकारसी आदि तप की गणना इस प्रकार की गई है-58 48 नवकारसी
एक उपवास 24 पौरुषी
एक उपवास 20 साढपौरुषी
एक उपवास 8 चौविहार युक्त पुरिमड्ढ
एक उपवास 12 तिविहार युक्त पुरिमड्ढ
एक उपवास 16 दुविहार युक्त पुरिमड्ढ
एक उपवास 10. तिविहार युक्त अवड्ढ
एक उपवास 4 एकासना
एक उपवास 3 नीवि
एक उपवास 2 आयंबिल
एक उपवास उपाध्याय क्षमाकल्याणजी महाराज ने उपवास एवं स्वाध्याय के अन्य मानदंड की दूसरी तालिका इस प्रकार दर्शायी है59
• प्रतिदिन सौ गाथा का स्वाध्याय करने पर = एक वर्ष में 36 हजार का - स्वाध्याय होता है। • प्रतिदिन दो सौ गाथा का स्वाध्याय करने पर = एक वर्ष में 72 हजार का
स्वाध्याय होता है। • प्रतिदिन तीन सौ गाथा का स्वाध्याय करने पर = एक वर्ष में 1 लाख 8
हजार का स्वाध्याय होता है। • प्रतिदिन चार सौ गाथा का स्वाध्याय करने पर = एक वर्ष में 1 लाख 44 हजार का स्वाध्याय होता है।