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32...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण साधकों को उत्सर्ग मार्ग का सेवन करना चाहिए। प्रायश्चित्त दान में उत्सर्गत: उपवास और उपवास से अधिक बेला, तेला आदि तप ही दिया जाता है किन्तु इस दुषम काल में धृतिबल-संहननबल आदि का क्रमशः हास होने के कारण उत्सर्ग मार्ग का अनुसरण करना शक्य नहीं है। इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए पूर्वाचार्यों ने उपवास आदि तप की परिपूर्ति के बराबर उससे अल्पतर तपों का प्रावधान भी किया है जिसके समाचरण से प्रत्येक साधक अपवाद तप का सेवन करते हुए भी उत्सर्ग तप को परिपूर्ण कर सकता है। __ महानिशीथ के दूसरे अध्ययन, झीणी चर्चा तथा तात्त्विक ढाल-8 के अनुसार उपवास आदि के अन्य मानदंडों की तालिका इस प्रकार है
1200 गाथाओं का स्वाध्याय 1600 नवकार मन्त्र का जाप अथवा 2000 गाथाओं का वांचन = एक उपवास 45 नवकारसी
= एक उपवास ___12 पुरिमड्ढ
एक उपवास 10 अवड्ढ
एक उपवास 6 नीवि
एक उपवास ___4 एकासन
= एक उपवास 2 आयंबिल
= एक उपवास • आगम की 8 गाथाओं का अर्थ सहित चिंतन करना
= एक उपवास आगम की 13 गाथाओं का अर्थ सहित चिंतन करना
__= दो उपवास आगम की 20 गाथाओं का अर्थ सहित चिन्तन करना
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= एक बेला
आगम की 40 गाथाओं का अर्थ सहित चिन्तन करना
= एक तेला आगम की 60 गाथाओं का अर्थ सहित चिन्तन करना
= एक चोला
एक