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________________ 18...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण का ही निरूपण करता है। वर्तमान में निशीथसूत्र के अनुसार प्रायश्चित्त दान प्रवर्तित नहीं है यद्यपि प्रायश्चित्त का आधारभूत ग्रन्थ होने से इसमें वर्णित प्रायश्चित्त विधि संक्षेप में इस प्रकार है23 निशीथसूत्र में तप प्रायश्चित्त के चार प्रकार मिलते हैं- 1. गुरुमासिक 2. लघुमासिक 3. गुरु चातुर्मासिक और 4. लघु चातुर्मासिक। लघुमासिक या मासलघु प्रायश्चित्त का अर्थ-एकासन और गुरु मासिक का अर्थ-उपवास है। इसी प्रकार लघु चातुर्मासिक का अर्थ-बेला (लगातार दो दिन तक अन्न का उपवास) और गुरु चातुर्मासिक का अर्थ-तेला (लगातार तीन दिन का उपवास) है। लघुमासिक के योग्य अपराध- दारूदण्ड का पादपोंछन बनाना, पानी निकालने के लिए नाली बनाना, आहार लेने से पूर्व अथवा पश्चात दाता की प्रशंसा करना, निष्कारण परिचित घरों में प्रवेश करना, अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ की संगति करना, शय्यातर-आवास देने वाले मकान मालिक के यहाँ का आहार-पानी ग्रहण करना आदि क्रियाओं से लघुमासिक प्रायश्चित्त आता हैं। गुरुमासिक के योग्य अपराध- अंगादान का मर्दन करना, अंगादान के ऊपर की त्वचा दूर करना, अंगादान को नली में डालना, पुष्पादि सूंघना, पात्र आदि दूसरों से साफ करवाना, सदोष आहार का उपभोग करना आदि क्रियाएँ गुरुमासिक प्रायश्चित्त के योग्य हैं। लघुचातुर्मासिक के योग्य अपराध- प्रत्याख्यान का बार-बार भंग करना, गृहस्थ के वस्त्र, पात्र, शय्या आदि का उपयोग करना, प्रथम प्रहर में ग्रहण किया हुआ आहार चतुर्थ प्रहर तक रखना, दो कोस से आगे जाकर आहार लाना, विरेचन लेना अथवा औषधि का सेवन करना, शिथिलाचारी को नमस्कार करना, वाटिका आदि सार्वजनिक स्थानों में मल-मूत्र डालकर गन्दगी करना, गृहस्थ आदि को आहार-पानी देना,दम्पत्ति के शयनागार में प्रवेश करना, समान आचारवाले साधु-साध्वी को स्थान आदि की सुविधा न देना, गीत गाना, वाद्ययन्त्र बजाना, नृत्य करना, अस्वाध्याय के काल में स्वाध्याय करना अथवा स्वाध्याय के काल में स्वाध्याय न करना, अयोग्य को शास्त्र पढ़ाना अथवा योग्य को शास्त्र न पढ़ाना, अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ को पढ़ाना अथवा उससे पढ़ना आदि क्रियाओं से लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। गुरुचातुर्मासिक के योग्य अपराध- स्त्री अथवा पुरुष से मैथुन सेवन के
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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