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________________ 16...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण तप प्रायश्चित्त योग्य दोष चेतना सम्पृक्त कषाय-विषयजन्य अध्यवसायों को कृश करना, वैभाविक शक्तियों को क्षीण करना तप कहलाता है। जिन अपराधों का छुटकारा तप करने से ही हो सकता है, उन्हें तप प्रायश्चित्त योग्य दोष कहते हैं। टीकाकारों एवं पूर्वाचार्यों के अभिमतानुसार निम्न स्थितियों में तप प्रायश्चित्त करना आवश्यक है 1. पंचाचार में अतिचार लगने पर 2. काल मर्यादा का उल्लंघन करने पर 3. महाव्रतों का खण्डन होने पर 4. पापकारी विविध प्रवृत्तियाँ करने पर आदि। इस तरह की दोषजन्य अनेक स्थितियों का विस्तृत वर्णन अध्याय-6 में किया जाएगा, क्योंकि तप प्रायश्चित्त जनित अपराधों की संख्या असीमित होने से उनका वर्णन एक स्वतन्त्र अध्याय में करना अधिक उचित होगा। .. तदुपरान्त व्यवहारभाष्य के अनुसार तप योग्य कुछ विशेष दोष एवं उसके निराकरण रूप प्रायश्चित्त (दण्ड) इस प्रकार हैं22 - • डंडे को ग्रहण करते समय अथवा नीचे रखते समय भूमि का प्रमार्जन न करने पर, • वसति के बाहर जाते समय ‘आवस्सही' और पुन: प्रवेश करते समय 'निसीहि' का उच्चारण न करने पर, • उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'नमो खमासमणाणं' न कहने पर पाँच अहोरात्रि का तप प्रायश्चित्त आता है। निम्न क्रियाओं में विधिपूर्वक आचरण न करने पर पाँच अहोरात्रि का प्रायश्चित्त प्राप्त होता है • संस्तारक की विंटलिका को लेते-रखते समय, • विधिपूर्वक न थूकने पर, • वस्त्र आदि को धूप से छांव में और छांव से धूप में संक्रमित करते हुए, • स्थंडिल से अस्थंडिल में अथवा अस्थंडिल से स्थंडिल में आते हुए, • काली मिट्टी वाले प्रदेश से नीली मिट्टी वाले प्रदेश में संक्रमण करते हुए अथवा नीली से काली मिट्टी युक्त क्षेत्र में गमन करते हुए, • यात्रा-पथ से गाँव में प्रवेश करते हुए अथवा गांव से यात्रा-मार्ग में जाते हुए पैरों का प्रमार्जन अथवा निरीक्षण न करने पर। ____ • जैसे सचित्त जल से भीगे हुए हाथ या पात्र में भिक्षा लेने पर लघुमास का प्रायश्चित्त आता है वैसे ही हरिताल, हिंगुलक, अंजन, नमक आदि सचित्त पृथ्वीकाय तथा मिश्र पृथ्वीकाय से सने हुए हाथ या पात्र से भिक्षा लेने वाले मुनि को लघुमास का प्रायश्चित्त आता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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