________________
14... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
से हो जाती है।
व्यवहारभाष्य 18 आदि टीका मूलक साहित्य एवं विधिमार्गप्रपा 19 और आचारदिनकर20 आदि वैधानिक साहित्य के मतानुसार निम्न प्रवृत्तियों में व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त (कायोत्सर्ग) आता है
1. उपाश्रय से विहार एवं गमनागमन की क्रिया करने पर, 2. सावद्य (हिंसक) स्वप्न देखने पर या हिंसा आदि की घटना सुनने पर, 3. नाव के द्वारा नदी आदि पार करने पर या तैरने पर, 4. मल-मूत्र आदि का परिष्ठापन करने पर, 5. सूत्र का प्रत्यावर्त्तन करने पर, 6. पैरों से नदी उल्लंघन करने पर- इन क्रियाओं में लगने वाले दोषों की संशुद्धि कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त से होती है। किस दोष में कितने श्वासोश्वास परिमाण कायोत्सर्ग करें?
• भोजन, पानी, संस्तारक, आसन आदि का मर्यादापूर्वक ग्रहण करने पर भी, मल-मूत्र का त्याग करने पर, असावधानी से दूसरों के शारीरिक अंगों का संस्पर्श या व्याघात होने पर, उपाश्रय से सौ हाथ अधिक दूर जाने पर, पूज्य गुरु एवं ज्येष्ठ साधुओं की शय्या और आसन का उपयोग करने पर पच्चीस उच्छ्वास (श्वासोश्वास) का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• जीववध, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह - इनका स्वप्न में सेवन करने, करवाने और अनुमोदन करने पर, महाव्रतों का देशत: या सर्वतः भंग होने पर, हिंसा आदि के स्वप्न आने पर सौ श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए। वर्तमान परिपाटी के अनुसार चार बार चतुर्विंशतिस्तव का ध्यान करें । चतुर्थ महाव्रत के खंडित होने का स्वप्न आने पर एक सौ आठ श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए। आचार मर्यादा का खंडन होने पर भी यही प्रायश्चित्त करें।
• दैवसिक प्रतिक्रमण में 100 श्वासोश्वास का, रात्रिक प्रतिक्रमण में 50 श्वासोश्वास का, पाक्षिक प्रतिक्रमण में 300 श्वासोश्वास का, चौमासी प्रतिक्रमण में 500 श्वासोश्वास का और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में 1008 श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
• सभी आगम सूत्रों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा में सत्ताईस उच्छ्वास के कायोत्सर्ग का विधान है। स्वाध्याय की प्रस्थापना और काल का प्रतिक्रमण आदि करने के पश्चात आठ उच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग (एक बार नमस्कारमंत्र का स्मरण) करना चाहिए ।