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2...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण विधिवत अनुसरण करना चाहिए, तभी संसारी चेतना जन्म-जरा-मरणरूपी व्याधि से छुटकारा पाकर चिरस्थायी स्वास्थ्य लाभ की उपभोक्ता बन सकती है। प्रायश्चित्त शब्द के विभिन्न अर्थ
प्रायश्चित्त, श्रमण संस्कृति का आधारभूत शब्द है। जैन, वैदिक एवं बौद्ध- इन तीनों परम्पराओं में इसका प्रयोग दण्ड देने के रूप में किया जाता रहा है। अध्यात्म मार्ग में लगने वाले दोषों से परिमुक्त होने के लिए जो दण्ड दिया जाता है उसे आगमिक शैली में प्रायश्चित्त कहा गया है।
'प्रायश्चित्त' दो शब्दों के योग से बना है प्रायः + छित्। जैनागमों एवं टीकाओं में इन शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ किये गये हैं।
• धर्मसंग्रह में इसकी व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है- "प्रायः पापं विनिर्दिष्ट, चित्तं तस्य विशोधनम्।" प्राय: का अर्थ है पाप और 'चित्त' का अर्थ है विशोधन करना अर्थात पाप को शुद्ध करने की क्रिया का नाम प्रायश्चित्त है। प्राकृत कोश में 'प्रायश्चित्त' शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है
पावं छिंदइ जम्हा, पायच्छित्तं ति भण्णई तेण ।
पाएण वा वि चित्तं, सोहयति तेण पच्छित्तं ।। जिसके द्वारा पाप का छेदन होता है उसे 'प्रायश्चित्त' कहते हैं। प्राकृत भाषा के 'पायच्छित' शब्द का संस्कृत में ‘पापच्छित' रूप भी बनता है।
• अभिधानराजेन्द्रकोश में इसकी व्युत्पत्ति इस प्रकार की गई है- "पापं छिनत्तीति पापच्छित" अर्थात जो पाप का छेद करता है वह ‘पापच्छित्' कहलाता है।
• उपर्युक्त गाथा की व्याख्या करते हुए प्रायश्चित्त की निम्न परिभाषा भी दी गयी है- “पापमशुभं छिनत्ति कृन्तति, यस्माद्हेतोः पापच्छिदिति वक्तव्ये प्राकृतत्वेन 'प्रायच्छित्तमि' ति भण्यते निगद्यते तेन तस्माद्हेतोः प्रायेण बाहुल्येन। वाऽपीत्यथवा, चित्तं मन/शोधयति निर्मलयति तेन हेतुना प्रायश्चितमित्युच्यते। इति गाथार्थः। "प्रायशो वा चित्तं जीवं शोधयति कर्म मलिनं विमली करोति तेन कारणेन प्रायच्छित्तमित्युच्यते। चित्तं स्वेन स्वरूपेण अस्मिन् सतीति प्रायश्चित्तं, प्रायो ग्रहणं संवरादेरपि तथाविधचित्तसद्भावादिति गाथार्थः।" -जो जीव या चित्त को शुद्ध करता है