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220... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
• यदि रजोहरण चुरा लिया जाए और पुनः नहीं मिले, तो बेले का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार रजोहरण के लिए अट्टम का प्रायश्चित्त भी बताया गया है।
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मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण को नष्ट करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण कहीं गिर जाएं और पुनः प्राप्त भी हो जाएं, किन्तु प्रतिलेखना करने से रह जाएं तो नीवि का प्रायश्चित्त आता है। मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण गुम होकर पुनः न मिले तो बेले का प्रायश्चित्त बताया गया है।
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मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना न करने पर एकासन का प्रायश्चित्त
रजोहरण की प्रतिलेखना न करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त
सन्ध्या के समय प्रत्याख्यान न करने पर नीवि का प्रायश्चित्त
आता है।
आता है।
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आता है।
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प्रत्याख्यान का भंग करने पर उस प्रत्याख्यान के समतुल्य बताए गए नमस्कार मन्त्रों की संख्या का जप करना चाहिए।
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प्रत्याख्यान करने के बाद भूल जाएं कि मैंने प्रत्याख्यान किया या नहीं, तो उसके लिए एकासन का प्रायश्चित्त आता है।
• संध्या के समय चतुर्विध आहार का प्रत्याख्यान न किया हो और प्रभातकाल में नवकारसी, पौरुषी आदि का प्रत्याख्यान न किया हो या प्रत्याख्यान करने पर भी वह प्रत्याख्यान टूट गया हो, तो उसके लिए पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• स्थण्डिल भूमि का प्रतिलेखन न करने पर एकासन का प्रायश्चित्त
आता है।
अन्य मुनि के द्वारा प्रतिलेखित भूमि पर रात्रि में मलोत्सर्ग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
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• सभी पात्रों को खंडित करने पर उत्कृष्टतः आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• मांगकर लाई गई सूई खो जाने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। कुछ मुनिजन इसके लिए दस उपवास का प्रायश्चित्त बताते हैं ।