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________________ .219 जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ.... • अन्नादि से खरड़े हुए पात्रों को रखने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। • अकाल के समय मल का विसर्जन करने पर, मलोत्सर्ग के पात्र में कृमि होने पर, तथा उल्टी होने पर इन सभी में उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • उपधि कहीं गिर गई हो और पुनः प्राप्त होने पर वह प्रतिलेखन करने से रह गई हो अथवा दूसरों से उस उपधि का प्रतिलेखन करने हेतु कहें, तो जघन्य प्रकार की उपधि के लिए नीवि, मध्यम प्रकार की उपधि के लिए पुरिमड्ढ तथा उत्कृष्ट प्रकार की उपधि के लिए एकासन का प्रायश्चित्त आता है। • सर्व उपधि कहीं गिर जाए और पुनः प्राप्त हो जाए, किन्तु प्रतिलेखन करने से रह जाए तो चार सौ बारह नमस्कार मन्त्र के जाप का प्रायश्चित्त आता है। • कदाचित विस्मृति वश जघन्य उपधि (मुँहपत्ति, पात्र केसरिका, गुच्छा, पात्र स्थापनक) की प्रतिलेखना रह जाए, तो आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है तथा उसे कोई चुरा ले जाए या धोए तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। मध्यम उपधि (पड़ला, पात्रबंध, चोलपट्टक, मात्रक, रजोहरण, रजस्त्राण) को कोई चुरा ले जाए या धोने ले जाए या धोये तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। · · सम्पूर्ण उपधि चुरा ली जाए अथवा आचार्य आदि को निवेदन किए बिना स्वेच्छा से उपधि वगैरह ले ली जाए, तो मुनियों को बेले का प्रायश्चित्त आता है। वर्षाकाल में सर्व उपधि को धोने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त • आता है। • गुरु को दिखाए बिना आहार करने पर तथा अन्य को देने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। • गुरु के रजोहरण एवं मुखवस्त्रिका का प्रमाद पूर्वक संस्पर्श (संघट्टा) होने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। कुछ लोग इसके लिए उपवास का प्रायश्चित्त भी बताते हैं । मुखवस्त्रिका कहीं गिर जाए अथवा चुरा ली जाए, तो उत्कृष्टतः उपवास का प्रायश्चित्त आता है। •
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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