________________
218...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• सूक्ष्म प्राभृतिकादोष से दूषित आहार करने पर एकासना का प्रायश्चित्त आता है। बादर प्राभृतिकादोष से दूषित आहार करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• पृथ्वीकाय को पीड़ित करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। • हाथ और पैर कीचड़ से लिप्त होने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• अप्काय, तेउकाय और वायुकाय से मिश्रित आहार करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
. परग्रामाहृतदोष से दूषित आहार ग्रहण करने पर क्रमश: आयंबिल एवं पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रमाद पूर्वक अप्रासुक प्रत्येक वनस्पतिकाय एवं अग्नि का सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• पश्चात्कर्म से दूषित आहार करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। अन्य मतानुसार एकासना का प्रायश्चित्त भी आता है।
• सचित्त से पिहित एवं संश्रित आहार का सेवन करने पर उपवास तथा अल्पदूषित पिण्ड का सेवन करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• दायक की प्रशंसा करके प्राप्त किए गए आहार का सेवन करने पर सामान्यतया आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है किन्तु उत्कृष्टत: उपवास का प्रायश्चित्त भी आता है।
• आहार का समय बीतने के पश्चात आहार करे, तो आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है तथा उस अतिक्रमित आहार का विशेष रूप से परिभोग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• शय्यातर के पिण्ड का भक्षण करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
. वर्षा के समय लाये गए अन्न का आहार करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रात:काल में लाए गए आहार को सन्ध्या तक रखने पर तथा वर्षाऋतु में अतिरिक्त आहार को फेंक देने पर क्रमशः पुरिमड्ढ एवं उपवास का प्रायश्चित्त आता है।