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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...209
अथवा कभी-कभी बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• असंख्य बेइन्द्रिय जीवों की हिंसा करने पर दो बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• असंख्य तेइन्द्रिय जीवों की हिंसा करने पर तीन बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• असंख्य चउरिन्द्रिय जीवों की हिंसा करने पर चार बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• असंख्य असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा करने पर पाँच बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• अधिक मात्रा में षटपदी (जू) का नाश करने पर भी पाँच बेले का प्रायश्चित्त आता है।
. पंचेन्द्रिय जीवों (तिर्यंच पश, निर्बल मनुष्य आदि) का पीड़ा युक्त संस्पर्श करने पर एकासन, उन्हें अल्प संतापित करने पर आयंबिल, उनको अत्यधिक पीड़ा देने पर उपवास तथा उनका घात करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है।
. अधिक मात्रा में पंचेन्द्रिय जीवों का घात करने पर संख्या के अनुसार उतने बेले करने का निर्देश दिया गया है। यह प्रायश्चित्त जीवों का प्रमादवश घात करने पर ही दिया जाता है। क्रोध पूर्वक हिंसा करने पर अन्य प्रायश्चित्त दिया जाता है।
• अंग का प्रमार्जन किये बिना खुजलाने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रमार्जन किये बिना भित्ति, स्तम्भ, आसन का संस्पर्श करने पर, युवती के वस्त्र का संस्पर्श होने पर तथा शरीर एवं भूमि का प्रमार्जन न करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• गीले आँवलों का एवं पृथ्वीकाय का मर्दन करने पर, चुल्लू मात्र सचित्त जल का स्पर्श करने पर, पूर्व एवं पश्चात कर्म का दोष लगने पर, नदी आदि पार करते समय नाभि तक जल का स्पर्श होने पर, अधिक मात्रा में अग्निकाय का स्पर्श होने पर, राजकथा-देशकथा-स्त्रीकथा एवं भक्तकथा करने पर, क्रोध, मान एवं माया करने पर, अत्यधिक मात्रा में प्रमाद करने पर भिक्षा