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210...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
में मिला हुआ आहार किसी अन्य को देने पर, उसका संचय करने पर, कालवेला के समय आहार करने एवं पैर धोने पर- इन सभी दोषों की शुद्धि के लिए उत्कृष्टतः आयंबिल और जघन्यत: पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• भिक्षाकाल में 47 दोषों का उपयोग न रखने पर, गोचरी की प्रतिलेखना न करने पर, नदी आदि पार करने पर, प्रमार्जन किए बिना पैर फैलाने पर, गृहस्थ के सामने पैर फैलाने पर, मल-मूत्र आदि का विसर्जन करते समय बोलने पर, गृहस्थों की भाषा में बोलने पर, अरिहंत-प्रतिमा के समीप कफ आदि का त्याग करने पर, लघुनीति आदि रोकने पर, ग्लान आदि की सेवा न करने पर, गृहस्थों से अथवा सहयोगियों से अंग का मर्दन करवाने पर, अकाल में अंग-मर्दन करने पर, शय्या की प्रतिलेखना न करने पर, द्वार में प्रवेश करने तथा निकलने की भूमि का प्रतिलेखन न करने पर, स्वाध्याय किए बिना आहार-पानी ग्रहण करने पर, मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना किए बिना आहार-पानी करने पर, गुरु के समक्ष आलोचना किए बिना आहार ग्रहण करने पर, अकाल में आहार-पानी ग्रहण करने पर, अकाल के समय अकारण मलोत्सर्ग भूमि में जाने पर, चैत्य एवं साधुओं को वन्दन आदि न करने पर, गृहस्थ के आसन का उपयोग करने पर, गमनागमन की आलोचना न करने पर, मुखवस्त्रिका के द्वारा सचित्त वस्तु ग्रहण करने पर, क्षणमात्र के लिए जूते, वाहन आदि का उपयोग करने पर, अज्ञातमार्ग में परिभ्रमण करने पर, पात्र, उपधि आदि में से बीज आदि निकलने पर-इन दोषों की शुद्धि के लिए पुरिमड्ढ करना आवश्यक है।
. लम्बे समय तक चलने पर, इसी प्रकार दीर्घ समय तक श्रम करने पर, वर्षा के प्रारम्भ में वस्त्र शुद्धि करने पर- इन तीनों दोषों के लिए आयंबिल का प्रायश्चित्त बताया गया है। कुछ आचार्य इन दोषों की शुद्धि के लिए बेले का प्रायश्चित्त बताते हैं।
• संवत्सरी एवं चातुर्मास के अन्त में दोष लगने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। कुछ आचार्यों के अनुसार चातुर्मास के अन्त में सर्व अतिचारों की शुद्धि के लिए बेले का प्रायश्चित्त आता है तो कुछ मुनिजन दस उपवास का प्रायश्चित्त भी बताते हैं। 4. तपाचार में संभावित दोषों के प्रायश्चित्त
अथ तप आचारे तपःप्रायश्चित्तं यथा-'संजाते तु तपःस्नाने