SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 206... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण · मुखवस्त्रिका अथवा रजोहरण में से किसी एक के गिरने पर नीवि का तथा दोनों के गिर जाने या नष्ट हो जाने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। • अविधि पूर्वक भोजन करने पर नीवि तथा भोजन में काल का ध्यान न रखने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • भोजन-पानी को ढके नहीं तथा मल-मूत्र एवं कालभूमि का प्रतिलेखन नहीं करें तो नीवि का प्रायश्चित्त आता है। • नवकारसी - पौरुषी वगैरह के प्रत्याख्यान न करें या प्रत्याख्यान लेकर तोड़ दें तो उसके लिए पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • इसी प्रकार तप प्रतिमा का अभिग्रह नहीं करें अथवा लेकर तोड़ दिया जाए तो उसका भी प्रायश्चित्त पुरिमड्ढ कहा गया है। तो क्रमश: • पाक्षिक, चातुर्मासिक एवं सांवत्सरिक प्रतिक्रमण नहीं करें, नीवि, आयंबिल एवं उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • गुरु के पारने के पहले ही कायोत्सर्ग पूर्ण कर लें, कायोत्सर्ग में पाठ उच्चारण जल्दी-जल्दी करें, कायोत्सर्ग का बीच में ही भंग करें, वन्दन एवं शक्रस्तव में भी इसी प्रकार करें तो क्रमशः नीवि, पुरिमड्ढ एवं एकासन का प्रायश्चित्त आता है। लघु जीतकल्प के अनुसार व्रते प्राणातिपाताख्ये पृथ्व्यप्तेजोमरुत्वताम् । प्रत्येकशाखिनां चैव संस्पर्शे विरसं विदुः ।।14।। अगाढतापे पूर्वार्धं गाढतापे सुभोजनम् । विघातने पुनः शीतं वदन्ति श्रुतवेदिनः ।।15।। सूक्ष्माम्बुतेजसोः स्पर्शे पूर्वार्धं शोधनं परम् । तयोर्बादरयोः स्पर्शे कामघ्नं विदुरादिमाः । 116 ।। स्पर्शे जलचराणां तु प्राणाधारं विनिर्दिशेत्। जलार्द्रवस्त्रसंघट्टे कथयन्ति सुभोजनम्।।17।। कम्बलेनाप्तेजसोश्च स्पर्शने विरसं मतम् । ज्वलने शङ्कितपदं स्पृष्टे सजलमिष्यते । ।18।। हरिताङ्कुरसंमर्दे क्रोशेक्रोशे गुरुर्गुरुः । हरितानां च संस्पर्शे भूयसा बीजमर्दने । ।1911 सुन्दरं किसलोन्मर्दे धर्माच्छुद्धिर्दिनेदिने । नद्युत्तारे गुरुः कार्यस्तस्माच्छुद्धिरुदीरिता ।।20।। तथाचानन्तकायानां चतुस्त्रिव्द्यक्षदेहिनाम् । संस्पर्शे पितृकालस्तु शीतं मर्दवादने।।21।। आगाढपरितापे तु प्राणाधारः प्रकीर्तितः । एषां च गाढसंतापे सजलं शोधनं विदुः । । 22।। विघाते च तथैतेषां धर्मपुण्यमपि
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy