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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 205 • इसी प्रकार धूमदोष एवं अकारणदोष से युक्त पिण्ड का उपभोग करने पर भी आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। • कृतदोष, अध्यवपूरकदोष एवं पूतिदोष से युक्त आहार, मिश्रदोष से युक्त पिण्ड तथा अनन्तर - अनन्तरागत दोष से युक्त पिण्ड ग्रहण करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। ओघऔद्देशिक दोष (सामान्य रूप से साधुओं के लिए बनाया गया आहार), औद्देशिक दोष, उपकरणपूति दोष, स्थापना दोष, प्राभृतदोष, लोकोत्तरप्रामित्य दोष, लोकोत्तरपरिवर्तित दोष, परभावक्रीत दोष, स्वग्रामअभ्याहत दोष, मालापहृत दोष, जघन्य - दर्द - रादिक दोष, सूक्ष्मचिकित्सा दोष, सूक्ष्मसंस्तव दोष, प्रक्षितत्रिक दोष, दायक - पिहित दोष, प्रत्येक - पिहित दोष, परम्परापिहित दोष, दीर्घकालीन स्थापित दोष, अनन्तरस्थापित पिहितमिश्र दोष- इसी प्रकार अन्य दोषों की शंका होने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है। • स्थापित सूक्ष्मदोष, सरजस्कदोष, स्निग्धदोष, म्रक्षितदोष, परम्परमिश्रदोष, परिष्ठापनदोष तथा इसी प्रकार के अन्य दोषों का सेवन करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है। • चारित्राचार सम्बन्धी अन्य दोष • भिक्षाचर्या एवं भिक्षाग्रहण सम्बन्धी उपरोक्त दोषों की विस्मृति होने पर तथा इनका प्रतिक्रमण किए बिना यदि अनालोचित आहार को ग्रहण कर लिया हो, तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। दौड़ने, लांघने, शीघ्र गति से चलने, संघर्षण करने, क्रीड़ा करने, कौतुक करने, वमन करने, गीत गाने, अधिक हँसने, ऊँचे स्वर से बोलने या कठोर वचन बोलने, प्राणियों की आवाज निकालने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। • पूर्वकथित तीन प्रकार की उपधि भ्रान्ति या विस्मृति के कारण प्रतिलेखना के बिना रह जाये, तो उन तीनों उपधि में क्रमशः नीवि, पुरिमड्ढ एवं एकासन का प्रायश्चित्त आता है। ज्येष्ठ मुनि को निवेदन किए बिना कोई किसी की उपाधि उठा ले जाए, उसका हरण कर ले, उसे धोए, अन्य किसी को दे, स्वामी की आज्ञा के बिना उसका भोग करे तो जघन्य से एकासन, मध्यम से उपवास एवं उत्कृष्ट सेबेले का प्रायश्चित्त बताया गया है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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