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________________ 204...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण उन जीवों को अत्यधिक कष्ट देने पर आयंबिल तथा उन्हें प्राण रहित करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। . पंचेन्द्रिय जीवों का भी पूर्ववत संस्पर्शन, परितापन, महासंतापन एवं उत्थापन करने पर क्रमश: एकासना, आयंबिल, बेला एवं बेला तप का प्रायश्चित्त आता है। • मृषावाद और अदत्तादान इन दोनों का द्रव्य, क्षेत्र, काल या भाव की अपेक्षा आचरण करने पर जघन्यतः एकासना, मध्यमत: आयंबिल एवं उत्कृष्टत: उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • पात्र वगैरह रात्रि भर भोज्य पदार्थ से लिप्त रह जायें तो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • इसी प्रकार बादाम, सुपारी, सौंफ आदि शुष्क वस्तुओं को रात्रि में रखने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। • कदाचित सूर्यास्त हो जाने के पश्चात तक भी अशन-पान का सेवन किया हो तो उसके प्रायश्चित्त के लिए अट्ठम करना चाहिए। • मुनि धर्म का पालन करते हुए ज्ञाताज्ञात अवस्था में आहार से सम्बन्धित 47 दोषों के लगने की भी सम्भावना रहती है। उन 47 दोषों के प्रायश्चित्त इस प्रकार हैं • कर्म औद्देशिक पिण्ड, परिवर्तित पिण्ड, स्वग्रहपाखण्डमिश्र पिण्ड, बादरप्राभृतिक पिण्ड, सप्रत्यवाद अभ्याहृत पिण्ड के ग्रहण करने पर अथवा लोभवश अतिमात्रा में पिण्ड ग्रहण करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • इसी प्रकार प्रत्येक वनस्पतिकाय अथवा अनंतकाय से निक्षिप्त पिण्ड के ग्रहण करने पर तथा संहृतदोष, उन्मिश्रदोष, संयोजनादोष, अंगारदोष आदि दोषों से युक्त पिण्ड एवं निमित्तपिण्ड का उपभोग करने पर एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • औद्देशिक, मिश्र, धात्री, प्रकाशकरण, पूर्व-पश्चात्संस्तव आदि कुत्सित दोषों से युक्त आहार का स्पष्ट रूप से सेवन करने पर अथवा इन दोषों से संसक्त, लिप्त, संलग्न, निक्षिप्त, पिहित, संहृतपिण्ड का उपभोग करने पर अथवा इन कुत्सित दोषों से मिश्रित पिण्ड का उपभोग करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है।
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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