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196...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
का नाश करने पर चार बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• पंचेन्द्रिय पशु या निर्बल मनुष्य आदि का स्पर्श होने पर एकासन, उन्हें अल्प संतापित करने पर आयंबिल, अत्यधिक संतापित करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रमाद वश एक पंचेन्द्रिय जीव का घात होने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार प्रमादवश जितने पंचेन्द्रिय जीवों का घात हो, उतने ही बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• अहंकार पूर्वक एक पंचेन्द्रिय जीव का घात करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार दर्प पूर्वक जितनी संख्या में पंचेन्द्रिय जीवों का घात हो उतनी ही मात्रा में दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। 8. तपाचार से सम्बन्धित दोषों के प्रायश्चित्त
तपोतिचारेऽथ तपः कुर्वतां विघ्ननिर्मितौ। निन्दायां विरसं शुद्ध्यै नियमे सति सर्वदा।।26।। प्रत्याख्यानाकृतौ धौ नियमस्याप्यभावतः। अप्रत्याख्यानतः शुद्धिः श्राद्धस्य विरसं शुभम्।।27।। पौरुषीमन्त्रयुतयोः शान्तपूर्वार्धयोरपि। आचाम्लपूतधर्माणां भने कार्ये च तत्पुनः।।28।। वमनादिवशाद्भङ्गे शान्तं विरसमेव वा। ग्रन्थिमुष्ट्याभिग्रहादिभङ्गे मध्याह्नमादिशेत्।।29।। दिने दिने लघुप्रत्याख्यानस्याकरणे. लघु। मन्त्रयुक्पौरुषीग्रन्थियुतादीनां च भङ्गतः।।30।। कैश्चिदष्टोत्तरशतमन्त्रजापो निगद्यते।
(आचारदिनकर भा. 2, पृ. 255) • किसी के तप में विघ्न डालने पर तथा उसकी निन्दा करने पर नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• नवकारसी, पौरुषी, पुरिमड्ढ, एकासना, नीवि, आयंबिल एवं उपवास का प्रत्याख्यान भंग होने पर पुन: उसी प्रत्याख्यान का प्रायश्चित्त आता है।
. वमन आदि के कारण प्रत्याख्यान का भंग होने पर एकासना या नीवि का प्रायश्चित्त आता है।
• गंठिसहियं या मुट्ठिसहियं प्रत्याख्यान का भंग होने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• प्रतिदिन नवकारसी आदि के प्रत्याख्यान नहीं करने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।