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________________ जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ... 195 विशुद्धये ।।16।। गाढ संतापने धर्मं सजलं तदुपद्रवे। तथा ह्यनन्तकायानां चतुर्द्वित्र्यक्षधारिणाम्।।1711 संघट्टे पितृकालः स्याच्च तुः पादउपद्रवे। एकस्यापि द्वीन्द्रियस्य विनाशे मुक्त इष्यते ।।18।। द्वयोर्विनाशे द्विगुणस्त्रयाणां त्रिगुणः पुनः । यावद्द्वीन्द्रियघातः स्यात्तत्संख्या गुरवः स्मृताः।।19।। त्र्यक्षाणां चतुरक्षाणां विनाशेप्येवमादिशेत् । असंख्यानां द्वीन्द्रियाणां विनाशे स्यात्सुखद्वयम् । । 2011 सुखत्रयं त्रीन्द्रियाणां चतुरिन्द्रियदेहिनाम् । असंख्यानां विघाते स्याच्छुद्धिर्भद्रचतुष्टयात्।। 21 ।। पञ्चेन्द्रियाणां संघट्टे शुद्धये स्यात्सुभोजनम् । अगाढतापने शीतं गाढसन्तापने गुरु।।22।। प्रमादादेकपञ्चाक्षघाते पुण्यं समादिशेत् । एवं प्रमादात्पञ्चाक्षा यावन्तः स्युर्विघातिताः । । 23 ।। तावन्मात्राणि भद्राणि संभवन्ति विशुद्धये । दर्पादेकं च पञ्चाक्षं हत्वा संशुद्धिरन्तिमात् । । 241 । एवं दर्पेण यत्संख्याः पञ्चाक्षाः स्युर्विघातिताः । देयास्तावन्त आदेयाः प्राणिनः शुद्धिहेतवे । । 25।। ( आचारदिनकर भा. 2, पृ. 254-255) • बिना किसी प्रयोजन के अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय का स्पर्श करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। इन्हें अल्प पीड़ा देने पर पुरिमड्ढ, अत्यधिक पीड़ा देने पर उपवास तथा इन जीवों को उपद्रवित करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है। · अनन्तकाय एवं विकलेन्द्रिय जीवों का स्पर्श करने पर पुरिमड्ढ तथा उनको कष्ट देने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • एक संख्या में बेइन्द्रिय जीव का घात करने पर एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • दो संख्या में बेइन्द्रिय जीवों का विनाश करने पर दो उपवास, तीन संख्या में बेइन्द्रिय जीवों का नाश करने पर तीन उपवास, इसी तरह जितनी संख्या में बेइन्द्रिय जीवों का घात किया जाए, उतनी ही संख्या में उपवास का प्रायश्चित्त आता है। • तेइन्द्रिय एवं चउरिन्द्रिय जीवों का घात करने पर भी पूर्ववत प्रायश्चित्त आता है। असंख्य बेइन्द्रिय जीवों का नाश करने पर दो बेले का, असंख्य तेइन्द्रिय जीवों का नाश करने पर तीन बेले का और असंख्य चउरिन्द्रिय जीवों
SR No.006247
Book TitlePrayaschitt Vidhi Ka Shastriya Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages340
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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