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194...प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण अर्हद्विम्बाशातनायाः सामान्यकरणे गुरुः।।12।। ततो विशेषाद्विम्बस्य पदनिष्पूतमर्शने। धूपपात्रकुम्पिकादिवस्त्रादिलगने लघुः।।13।। अविधेर्मार्जने शान्तं विलम्बो बिम्बपातने। केचिदाहुः प्रतिमाया जघन्याशातने लघुम्।।14।। मध्यमाशातने शीतमेकानं बहुशातने। (आचारदिनकर भा. 2, पृ. 254)
• दर्शनाचार के शंका आदि पाँचों अतिचारों का देशत: (आंशिक) सेवन करने पर प्रत्येक अतिचार के लिए आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है तथा उनका सर्वत: (पूर्णतया) सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• संयम छोड़ने की भावना करने पर, मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा करने पर, पार्श्वस्थ आदि के साथ वात्सल्य भाव रखने रूप दोषों का आंशिक रूप से सेवन करने पर आयंबिल का प्रायश्चित्त आता है तथा इन दोषों का सम्पूर्ण रूप से सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• मुनि के श्लाघनीय प्रवचन की प्रशंसा न करने पर, साधर्मी भक्ति न करने पर, सामर्थ्य होने पर भी शासन प्रभावना न करने पर-इनमें अंशत: की अपेक्षा प्रत्येक दोष के लिए एक आयंबिल तथा सर्वत: की अपेक्षा प्रत्येक दोष के लिए एक-एक उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• सामान्य रूप से अरिहंत परमात्मा के बिम्ब की आशातना करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है, किन्तु जिनबिम्ब पर अपवित्र लेप लगाने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है।
• धूपदानी, कुम्पिका आदि तथा स्वयं के वस्त्रादि जिनबिम्ब के लगने पर पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
. अरिहंत परमात्मा के बिम्ब का विधिपूर्वक प्रमार्जन न करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है।
• हाथ से बिम्ब नीचे गिर जाये तो पुरिमड्ढ का प्रायश्चित्त आता है।
• कुछ आचार्य प्रतिमा की जघन्य आशातना में पुरिमड्ढ, मध्यम आशातना में आयंबिल तथा उत्कृष्ट आशातना में उपवास का प्रायश्चित्त बताते हैं। 7. चारित्राचार से सम्बन्धित दोषों के प्रायश्चित्त
अथवा - चरणाचारेष्वप्तेजोवायुभूरुहाम्।।।15।। स्पर्शने कारणाभावाद्यतिकर्म समादिशेत्। आगाढतापने प्राहुः पितृकालं