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186... प्रायश्चित्त विधि का शास्त्रीय पर्यवेक्षण
परिग्रहे व्रते भग्ने हीने मध्येऽधिकेऽथवा । क्रमादरोगकामघ्नं धर्मश्चापि विशोधनम्।।58।। दर्पाद्भग्ने व्रते तस्मिन्नन्तिमं प्राहुरन्यथा । लक्षं साशीतिसाहस्रं मन्त्रजापं समादिशेत् । 159।। पञ्चाणुव्रतभङ्गेषु स्वप्नतश्च कदाचन । कायोत्सर्गा वेद संख्यैः सचतुर्विंशतिस्तवैः । । 60 ।।
( आचारदिनकर भा. 2, पृ. 255-256) जल के जीवों का विनाश करने पर, चींटी, मकड़ी एवं इसी प्रकार के अन्य जीवों का अधिक संख्या में नाश करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
सचित्त पानी अर्थात अनछना जीवयुक्त पानी पीने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• सचित्त (बीजयुक्त) आहार- पानी का एक बार सेवन करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है तथा बारंबार उस प्रकार के भोजन-पानी का सेवन करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है ।
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मृषावादत्याग-व्रत का भंग होने पर जघन्यतः पुरिमड्ढ, मध्यमतः आयंबिल एवं उत्कृष्टतः दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
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किसी पर मिथ्या दोषारोपण करने पर जैसे- अमुक को खजाना मिला है, जघन्यतः पुरिमड्ढ, मध्यमतः नीवि एवं उत्कृष्टत: उपवास का प्रायश्चित्त
आता है।
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जानबूझकर ऐसी चोरी करने पर, जिससे घर में कलह हो दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। कुछ आचार्यों ने इसके लिए दस उपवास एवं शुद्ध मन से एक लाख नमस्कार मन्त्र का जाप करने का भी प्रायश्चित्त बताया है। अहंकारपूर्वक की जाने वाली सभी तरह की चोरियाँ चाहे वे जघन्य हों तो भी दस उपवास का ही प्रायश्चित्त कहा गया है।
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चतुर्थ अणुव्रत में स्वपत्नी एवं वेश्या के सम्बन्ध में गृहीत नियम का भंग होने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है ।
• हीनजाति की परस्त्री के साथ संभोग करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
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स्वजाति की परस्त्री से संभोग करने पर एक लाख नमस्कारमन्त्र के जाप सहित दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।