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जैन एवं इतर साहित्य में प्रतिपादित प्रायश्चित्त विधियाँ...187
• उत्तम कुल की परस्त्री के साथ संभोग करने पर दस उपवास सहित एक लाख अस्सी-हजार नमस्कार-मन्त्र के जाप का प्रायश्चित्त आता है।
. बलपूर्वक अर्थात् जानबूझकर स्वजाति की परस्त्री के साथ संभोग करने पर मूल प्रायश्चित्त आता है।
. बलपूर्वक अपनी पत्नी के साथ इस व्रत का भंग करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• शब्दभेद अर्थात ध्वनि की समानता के कारण अपनी पत्नी के भ्रमवश अन्धकार में अन्य किसी नारी के साथ इस व्रत का भंग करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• निर्बल स्त्री के साथ बलपूर्वक इस व्रत का भंग करने पर भी दस उपवास का ही प्रायश्चित्त आता है।
• विवाहित स्त्री के साथ व्रत की निश्चित्त काल-मर्यादा का उल्लंघन करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है।
• उत्तम कुल की स्त्री के साथ मर्यादा का उल्लंघन करने पर मूल प्रायश्चित्त आता है, किन्तु ख्याति प्राप्त व्यक्ति को दस उपवास का प्रायश्चित्त देने का निर्देश है। उसके लिए मूल प्रायश्चित्त दान का निषेध किया गया है।
• परिग्रहव्रत का भंग होने पर जघन्यत: एकासन, मध्यमत: आयंबिल एवं उत्कृष्टत: उपवास का प्रायश्चित्त आता है।
• अहंकार पूर्वक इस व्रत का भंग करने पर दस उपवास अथवा एक लाख अस्सी हजार नमस्कार मन्त्र के जाप का प्रायश्चित्त आता है।
• कदाचित पाँचों अणुव्रतों का स्वप्न में भंग हो, तो चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
मतान्तर से
मतान्तरे मृषावादे जघन्ये मध्यमेऽधिके।।84।। क्रमाच्छीतमनाहार उपवासशतं तथा। स्तेये जघन्ये निःपापमज्ञाते मध्यमे हितम्।।85।। ज्ञाते ग्राह्यं तथोत्कृष्टेऽज्ञाते ग्राह्यं सुखान्वितम्। मैथुने प्रव्रजितया गृहिणो मूलमादिशेत्।।86।। परसंग्रहणीभोगे नीचान्यस्त्रीरतेपि च। गुप्ते परस्त्रीभोगे च मुक्तं भवति मुक्तये।।87।। अज्ञाते द्वादश ग्राह्या ज्ञाते मूलं समादिशेत्। परिग्रहातिक्रमे चाज्ञानतो विदुरुत्तमम्।।88।।
(आचारदिनकर भा. 2, पृ. 257)